Sunday, January 30, 2011

घर


घर बनाने मे वक़्त लगता है
घर सजाने मे वक़्त नहीं लगता...

विजय कुमार श्रोत्रिय 

Tuesday, January 25, 2011

नया वर्ष आया

आपकी जो वाणी, उसी की तो जय हो
वाणिज्य वाणिज्य, किसी को ना भय हो 
सभी धन कमायें, सभी धन बढाएं
धरा को सभी हम, कोमल बनायें
पुनीत ने सबके कानो मे गुनगुनाया
नया वर्ष आया नया वर्ष आया....

आपको नव वर्ष की शुभकामनायें... इसी प्रकार नई नई रचनाओं से सभी का मन जीतते रहें...

विजय कुमार श्रोत्रिय
(ये पंक्तियाँ मैने पुनीत जी की निम्न पंक्तियों के उत्तर में लिखी थीं, 31.12.2010)

नया वर्ष आया !!!!!

अरे क्या सुना ,क्या किसी ने सुनाया,
हवा ने मेरे कान, कुछ भुनभुनाया,
मयूरा मना जोर से खिलखिलाया ,
नया वर्ष आया, नया वर्ष आया....1

नयी शक्ति जागृत नयी कामना  है
नए मार्ग पर तीव्र संभावना है,
बढ़ो बस यही वक्त की चाहना है,
ये ही कर्म देवी  की आराधना है,
यही तथ्य गतवर्ष ने गुनगुनाया .
नया वर्ष आया नया वर्ष आया..2

पढ़े हर कोई अन् पढ़ा  जन ना छूटे
मिटे अँधियारा किरण ज्ञान फूटे,
सभी कर कलम हों ना रगड़े अंगूठे
महाजन किसानो का हक अब ना खूँटें
नया वर्ष साक्षर बिगुल है बजाया
नया वर्ष आया नया वर्ष आया...3

सभी रोग मिट जाएँ विकसित हों टीकें
नीरोगी सभी जिंदगी ठीक बीते
ना बच्चा कोई और खांसे व छींके
रहे चंग सब पोलियो ड्रॉप पीके.
नए वर्ष ने स्वस्थ भारत दिखाया
नया वर्ष आया नया वर्ष आया...4

नए ऊँचे महलें  नए कुछ भवन हों
नए फैशनो  के नए पैरहन हों.
नए वाहनों के नए से चमन हों,
नए अर्ज धन के व्यवस्थित जतन हों,
नए वर्ष ने कुछ नया ही सिखाया
नया वर्ष आया नया वर्ष आया..5.

अमीरी बढे पर गरीबी बढे मत,
किसी के बदन पर कोई ऋण चढ़े मत,
कोई भी किसी से कभी भी लड़े मत
दहेजी बलि भेंट बेटी चढ़े मत
नए वर्ष का कंठ क्यों रूंध आया
नया वर्ष आया नया वर्ष आया...6

बहे प्रेम गंगा थमी आंधियां  हों
बमों गोलिओं   से बची वादियाँ हों,
रहे मेल भाई ,नरम भाभियाँ हों,
सभी वीर- जराओं  की  शादियाँ हों,
नए वर्ष ने शांति का पथ सुझाया  ,
नया वर्ष आया नया वर्ष आया....7

- पुनीत द्विवेदी "क्रांतिकारी Indore

Saturday, January 22, 2011

तीन रुबाइयां

चश्म आँखों ने सफ़र को देखा
मेरी माँ ने हर कहर को देखा
हर फलसफे से प्यार बढकर है
उनकी आँखों ने इस ज़हर को देखा
---
सड़क पर भागते शव को देखा
धुंद मे टिमटिमा पहर देखा
दौडते-भागते कटी हर शब्
रुकते-थकते ये मंज़र देखा
---
भावना आँख से छलकती है
प्यास से रोशनी चमकती है
मेरी बेटी के प्रश्न जैसे हों
उनमे अच्छी सुबह सी दिखती है

(21st Jan 2011, 6:30 AM, travelling from Guwahati to Shillong in Taxi)

Thursday, January 6, 2011

भारतीयों की भारतीयता

देखा है
देख रहा हूँ
और
देखूंगा
भारतीयों की भारतीयता
भारत के बाहर.
रूड़ियाँ परम्पराएँ व
सामाजिक मूल्य.
आकाश से साक्षात्कार करते पहाड़
रुड़ियों की भांति
तीब्र गति से बहतीं नदियाँ
घाटियों के मध्य
मूल्यों की भांति
मूल्यों के साथ.

कहाँ से कहाँ
शायद विरोधाभास ही
तय करेगा
विकास की गति.

भूटान
यानी - भूमि पर चट्टान
भारतीयों की आन
और
अभार्तियों की शान.
थिम्पू
राजधानी का रूप
कांग्लुंग
सभ्यता स्वरुप
थिम्पू के लोग
भारतीयों का संयोग
कांग्लुंग कहानी
पानी काला या काला पानी
जब तब बरसात
कहती अपनी बात
सूर्य प्रकाश
दौड़ता आकाश.

कान्ग्लुंग और थिम्पू
किसको बैराग
अपनी-अपनी डपली
अपना-अपना राग
दो समानांतर रेखाएं
अपनी-अपनी व्यथाएं
तुलनात्मक अपवाद
समानताओं की याद
भारतीयों का रूप
बदलता स्वरुप
समय के अनुसार
मूल्यों की हार
आखिर कब तक
चलता रहेगा
आत्मसमर्पण के बाद
आत्महत्या का प्रयास
देखा है, देख रहा हूँ और देखूंगा...

(Banquet Hall, Thimphu: 10:40 AM, 6th April 1996 - during Shercol Indian Teachers' Orientation Programme)