Friday, June 29, 2012

सोंचता हूँ

आदमी से आदमी, क्यों  भागता है दूर,
जानता है भांजता है, फिर वही भरपूर,
सोंचता हूँ खोल दूं, मैं चक्षु चलकर स्वयं
जानकर होता नहीं संतोष पथ पर चूर।

10 May 2012, Shillong 

Monday, June 25, 2012

विविधता

23

मुझे कंकड़ बताते हैं, विविधता माध्य होती है,
सभी रंगों मे सलग्न होकर, साध्य होती है, 
विविध आदत, विविध मापक, विविध रोना, विविध बोना,  
मैं इतना सोच सकता हूँ, बहुत आराध्य होती है।

Thursday, June 14, 2012

मैं इतना सोच सकता हूँ - 4

20
मेरा संसार उज्जवल है, मुझे घरवार का बल है,
सकल संसार मेरा घर, मेरा विश्वास निर्मल है,
मेरा दर्शन, मेरा बचपन, मेरा जीवन, मेरा उपवन,   
मैं इतना सोच सकता हूँ, यही सब साथ प्रतिपल है। 

21
मुझे संघर्ष करने का, जहाँ से भाव आता है,
उसी के मूल से,  शक्ति भरा प्रभाव आता है
मेरा हर क्रत्य अच्छा हो, मेरा आशय भी सच्चा हो
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं अलगाव आता है।

22
मुझे नेतृत्व का कौशल,  मेरे अपने सिखाते हैं
मगर हर क्रत्य को मेरे, वो पलड़ों में बिठाते हैं
मेरा सुनना, मेरा सहना, मेरा कहना, मेरा करना,
मैं इतना सोच सकता हूँ, मेरा जीवन सजाते हैं.

5 May 2012, Shillong

Thursday, June 7, 2012

नींद

मैं थकना चाहता हूँ नींद से, क्यों प्रातः होती है,
मेरी प्रतीक्षा हर दोपहर, प्रारम्भ होती है,
मेरे अपने, मेरे सपने, मेरा संचय, मेरा परिचय,
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं क्यों रात होती है.

4 May 2012, Shillong