Friday, December 28, 2012

शब्द

शब्द दान है शब्द मान है 
शब्द भागवत शब्द कुरान है 

शब्द सवेरा शब्द सांझ है
शब्द रोशनी शब्द चाँद है

शब्द जीत है शब्द हार है
शब्द आर है शब्द पार है

शब्द पीर है शब्द नीर है
शब्द शाश्वत शब्द नीड़ है

शब्द शक्ति है शब्द बाण है 
शब्द ब्रह्म है शब्द प्राण है 

Saturday, December 22, 2012

कौन हूँ मैं

मै वैसा नहीं हूँ
जैसा मेरी माँ सोचती है
जैसा मेरी बेटी सोचती है

माँ मुझे समझती है
एक पुत्र
वही पुत्र
जिसको उसने पाला-पोशा
मेरी पत्नी
मुझे मात्र एक पति
समझती है
मेरी बेटी
के लिए
मैं एक पिता के सिवा
कुछ नहीं

मैं स्वयं को
एक पुत्र से अधिक
एक पति से अधिक
एक पिता सोचता हूँ
अवश्य मैं
एक पुत्र हूँ
पिता हूँ
पति हूँ

मैं बना रहना चाहता हूँ
एक इंसान
एक मित्र
एक साथी
बस और कुछ नहीं
पुत्र, पिता व पति भी नहीं। 

Friday, December 21, 2012

चूना लगना जारी है – नेहू में बीसवां दीक्षांत समारोह २०१२

है दीक्षांत समीप आ रहा परिसर हुआ भिखारी है
काला कौआ बोल उड़ा चूना लगने की बारी है

खरपतवार बढ़े खंबे से खुश होता अधिकारी है
खिली-खिली आँखें हैं उसकी अब चांदी ही चांदी है
काला कौआ बोल उड़ा चूना लगने की बारी है

सड़क झेलती वजन शून्य का पाकेट कितनी भारी है
बोतल रैपर सिगरेट माचिस बीस लाख की गाड़ी है
काला कौआ बोल उड़ा चूना लगने की बारी है

बालू मिट्टी गिट्टी ठेका लेन-देन की बारी है
मजबूरी मजदूरी करती कामकाज सरकारी है
काला कौआ बोल उड़ा चूना लगने की बारी है

दूना खर्चा कभी न चर्चा मोलभाव बीमारी है
नेता क्रेता बोल चुके हैं सीएजी बीमारी है
काला कौआ बोल उड़ा चूना लगना तो जारी है

जल आकाश हवा ने भी तो कर ली इनसे यारी है
बड़ी-बड़ी मोटी फाइल में लीपा-पोती जारी है
काला कौआ बोल उड़ा चूना लगना तो जारी है

मैना गौरैया बुलबुल चुप ये इनकी लाचारी है
सीधा साफ़ सरल सम्प्रेषण खतरा कितना भारी है
सबकी बांछे खिली हुई हैं कुछ कहना मक्कारी है

सबका नेहू सबकी रोटी इसकी लाज हमारी है
हरी घास है हरी पत्तियाँ इक ही अर्ज़ हमारी है
पिले रहेंगे खिले रहेंगे चुप रहना बीमारी है

काला कौआ बोल उड़ा चूना लगना तो जारी है
सबकी बांछे खिली हुई हैं कुछ कहना मक्कारी है
है दीक्षांत समीप आ रहा परिसर हुआ भिखारी है

Thursday, December 13, 2012

जंगल में मनुष्य

देखे
कुछ मनुष्य
जानवरों के शहर में

मदमस्त हाथी
भौंकते कुत्ते  
दहाड़ते शेर
गुर्राते भालू

गर्भवती बकरी
रंग बदलते गिरगिट
रंभाती गाय
हिनहिनाते घोड़े
मिमियाती बिल्लियाँ

टरटराते मेंढक
रेंगते कछुए
फुफकारते सांप

भिनभिनाती मधुमक्खियाँ
कावं-कावं करते कौए
गुटरगूं करते कबूतर
चिंचिहाती चिड़ियाँ

'जब आती है मौत
गीदड़ की
तो भागता है
शहर की ओर'

निहारते गीदड़
भीगी बिल्ली
खूनी शेर
एक सन्नाटा
शांति का शोर

देखे
कुछ मनुष्य
जानवरों के शहर में
इस गाँव के मध्य
मेघों के घर में
या
इस शहरनुमा गावं में

जंगल में
क्यों घुस आयें हैं
कुछ मनुष्य
जानवरों के भेष में।


(18 Oct  2011 सुबह, जब मैं व मेरी पत्नी  टहल रहे थे, विश्वविद्यालय के एक  वरिष्ठ अध्यापक ने मुझसे हंसते हुए पूंछा 'आपने किसी मनुष्य को देखा टहलते हुए', उनका  इशारा उनके अन्य साथियों से था जिन्हें वो खोज रहे थे।  उनका यह वाक्य इस कविता का प्रेरणा-स्रोत बना। धन्यवाद प्रोफेसर शुक्ला)

Friday, December 7, 2012

मैं इतना सोच सकता हूँ - 10

51

मैं अंधों को दिखाकर रास्ता संतुष्ट होता हूँ
मगर इन स्वस्थ आँखों की व्यथा पर रुष्ट होता हूँ
नहीं उपलब्ध साधन साध्य फिर भी व्योम छूना  है
मैं इतना सोच सकता हूँ नहीं संतुष्ट होता हूँ

52

मैं अक्सर रात को उठ बैठकर सपने सुलाता हूँ
भरी आँखों से सारी स्रष्टि की रचना भुलाता हूँ
मेरी हर थपथपाहट पर वो सपना मुस्कराता है
मैं इतना सोच सकता हूँ मैं अपना कल सजाता हूँ

53

मैं अँधा हो चुका हूँ देखकर अंधी हुई दुनिया
मेरी आंखें भी ढूँढें हैं कोई क्रेता कोई बनिया
नयी सी रौशनी लेकर कोई बालक बुलाता है
मैं इतना सोच सकता हूँ मेरे कंधे तेरी दुनिया


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Thursday, November 29, 2012

पथ दिया मुझको बता पाथेय देगा कौन


ले लिया निर्णय करूँगा खोज होकर मौन
पथ दिया मुझको बता पाथेय देगा कौन

चल रहा हूँ आँख मींचे
मान कर आदेश सारे
मौन रहकर कष्ट सहकर
बिन दिशा तन के सहारे
किस दिशा मुड़ना बता निर्देश देगा कौन
पथ दिया मुझको बता पाथेय देगा कौन
ले लिया निर्णय करूँगा खोज होकर मौन

रास्ता जो ले चुका हूँ
पत्थरों संग चल रहा है
संगति सम-गति समय सुध
ज्ञान मेरा छल रहा है
कंकडों सी रेत में जल भेद देगा कौन
पथ दिया मुझको बता पाथेय देगा कौन
ले लिया निर्णय करूँगा खोज होकर मौन

झेल मौसम के थपेड़े
कुल बदन पीड़ित हुआ है
बोझ कन्धों पर लिए
नव लक्ष्य अब जीवित हुआ है
वह चमकता गाँव तुमको कर सकेगा मौन
ले लिया निर्णय करूँगा खोज होकर मौन
पथ दिया मुझको बता पाथेय देगा कौन

केश सब उलझे
हवाएं कर रहीं क्रंदन
थक गया है पथ सुझाए
प्राण प्रेरित मन
दे दिया साधन बता अब साध्य देगा कौन
पथ दिया मुझको बता पाथेय देगा कौन
ले लिया निर्णय करूँगा खोज होकर मौन

अनुभवों की पोटली ले
पथ मुझे अब भा रहा है
अब दिशा का ज्ञान कुछ
स्पष्ट होता जा रहा है
अब दिशाओं का नहीं है युद्ध मैं फिर मौन
ले लिया निर्णय करूँगा खोज होकर मौन
पथ दिया मुझको बता पाथेय देगा कौन

Thursday, November 22, 2012

जागो - 2

नींद आने पर
सोते हैं सभी
परन्तु
कुछ लोग
सोते हैं
बिना नींद के भी

नींद आने पर
सोने वाले
जाग जाते हैं
परन्तु
कभी नहीं जागते
बिना नींद के
सोने वाले

आसान होता है
जगाना
शारीरिक रूप से
सोए व्यक्ति को

काश कोई
जगा पाता
उनको जो सोए हैं
मानसिक रूप से

29.9.12.... Shillong

Sunday, November 18, 2012

जागो

लोग
आवाज उठा रहे हैं
चीख रहे हैं
चिल्ला रहे हैं
आवाज उठा रहे हैं

लिख रहे हैं
दिख रहे हैं
आवाज उठा रहे हैं

दूसरी ओर
लोग
शांत हैं
चुपचाप हैं
आवाज उठा रहे हैं
चुप रहकर
वे भी जागे हुए हैं
सोये नहीं हैं

शांत लोग
होते हैं
अधिक खतरनाक
अधिक भयंकर 
भिन्न होती है
उनकी भाषा
शांति की भाषा

अधिक भयावह
होती है
शांति की चीख
होता है
शांति का चिल्लाना

कुछ भी हो
चीखना-चिल्लाना
लिखना-दिखना
जागना
चुप रहकर भी
जारी  रहना चाहिए
जारी  रहेगा

बोलने-लिखने
चीखने-चिल्लाने
से अधिक
आवश्यक है
जागना
जागो
चाहे रहो शांत
लेकिन
जागो।

29.9.12... 6:30 AM  Shillong ... 

Saturday, November 17, 2012

Parking Reserved for Landlords

Craving to park my thoughts
Cornering from obvious places
Turning to the fresh looking sides
Listening to my inner voice
Exploring possibilities at the marked lines
And vacating satisfiers
For a while
Needed to park my thoughts
My ideas
Genuinely honest concern
Without a slightest view of
The Board Reading
'Parking Reserved for Landlords'
And me
Being no lord of my thoughts
In Bewilderment
Requesting The Lords
Please
Please provide me a space
For Parking
For Parking my Thoughts.

(10th Nov, 2012, Mumbai, ICA Conference)

Thursday, November 1, 2012

मैं इतना सोच सकता हूँ

48

वो मस्जिद तोड़ देते हैं ये मंदिर तोड़ देते हैं
ये नेता वोट की खातिर गणित सब  जोड़ लेते हैं
वही सब सुर वही सरगम वही है गीत  वही संगीत
मैं इतना सोच सकता हूँ नया सब कोढ देते हैं

49

वो कुप्पी को जलाता था जब भी रात होती थी
सुना है लालटेनों की भी अक्सर बात होती थी
वो अब रोशन करे है जिंदगी सबकी उजाले से
मैं इतना सोच सकता हूँ बस कलम दावात होती थी

50

मैं जब बीमार पड़ता हूँ मुझे कुछ क्रोध लगता है
नहीं लाये नहीं जाये इसी का शोध लगता है
जतन अच्छे करम अच्छे अरे समझो मेरे बच्चे
मैं इतना सोच सकता हूँ यही सब बोध लगता है

==============================
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Wednesday, October 24, 2012

चूड़ियाँ


मैंने देखी 
एक माँ
अपने
दो वर्षीय
पुत्र को
खेल-खेल में
पहनाती हुई
चूड़ियाँ

बच्चा
झटक रहा था
अपना हाथ
सिकोड़ रहा था
अपनी नाक
खींच रहा था
अपनी उँगलियाँ
तनी हुई थीं
उसकी भौंए
चेहरे में
दिख रही थी
अकड़
इस दो वर्षीय
लड़के के
आँखों में भरी थी
एक रुआंस
लेकिन एक बूँद न थी
आंसू की

मैंने द्रष्टि हटाई
उसकी माँ
की ओर देखा
मैं
प्रयास कर रहा था
पड़ने का
उस माँ की आँखों को
आंकने का
उन आँखों के
आधार को
समझने का
उस भीनी मुस्कान को

आभा
देखते बनती थी
माँ के चेहरे की
दबी सी दीप्ति

मानो
बच्चा
कहना चाहता था
कुछ भी हो
नहीं पहनूंगा
चूड़ियाँ

मानो
माँ
कहना चाहती थी
कभी नहीं
कभी नहीं
चाहूंगी मैं
की मेरे बेटे को
पहननी पडें
चूड़ियाँ

मैं
मात्र इतना
सोच रहा था
आखिर
कब तक
कब तक
यह दो वर्षीय बच्चा
अपने को
बचा पायेगा
चूड़ियों से

अपनी इच्छा से
या
किसी प्रभाव में

मुझे केवल
एक ही है
डर
कहीं
यह स्वीकार
न कर ले
स्वेच्छा से
पहनना
चूड़ियाँ
कभी इसको
अच्छा  लगने लगे
पहनना चूड़ियाँ

कम से कम
ऐसा नहीं लगता
देख कर
इसके
आज के तेवर

खेल-खेल में भी
चूड़ियाँ पहनना
उसे स्वीकार नहीं है
आखिर
स्वीकार
हो भी क्यों।

Thursday, October 18, 2012

राजनीति

47

मैं कुर्ता पहनता हूँ पर सियासत भर नहीं होती
कदम सीधे जुबां सीधी शराफ़त कम नहीं होती
ये कैसी राजनीति है जो बस कुर्सी बचाती है
मैं इतना सोच सकता हूँ खिलाफ़त कम नहीं होती
-------
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Friday, October 12, 2012

धूप

अच्छी लगती है धूप
बरसात के बाद
रात के बाद
गर्मी के लिए
रौशनी के लिए
अच्छी लगती है धूप

धूप  का महत्व
बरसात जताती है
रौशनी का महत्व
रात जताती है
ठीक उसी तरह
जैसे
सत्य का महत्व
असत्य
अच्छाई का
बुराई
रात का
दिन
आदि-इत्यादि

सब महत्वपूर्ण है
अच्छाई-बुराई
सत्य-असत्य
रात-दिन
जाड़ा-गर्मी-बरसात

इसीलिए
अच्छी लगती है धूप
गर्मी व पसीने से परे
बरसात के बाद
रात के बाद

धूप, छाया  व रोशनी
बरसात व अँधेरा
रात और दिन।

10.10.10 - Shillong

Thursday, October 4, 2012

मूंछें

छोटे-छोटे
बालकों को
अच्छी लगती हैं
मूंछें
अच्छा  लगता है
खेलना
दाड़ी बनाने के
सामान से

जैसे-जैसे
बड़ते हैं वे
उनकी अपनी
आती हैं
मूंछे

और फिर
धीरे-धीरे
उनकी मूंछें
होती जाती हैं
छोटी
और छोटी

और नौकरी
मे आने के बाद
प्रोन्नत
हो जाने के बाद
धीरे-धीरे
गुम  होती जाती हैं
मूंछें

समय के साथ
परिस्थितियों के साथ
कैसे समायोजित
हो जाती हैं
मूंछें

मूक
विचारता हूँ मैं
प्रयास करता हूँ
समझने का
कारण
इस समायोजन का

विवशता
अभिलाषाएं

आकांक्षाएं

काश
ऐसा न होता

बालकों की तरह
अच्छी लगती रहतीं
मूंछें
अच्छा  लगता रहता
खेलना
दाड़ी बनाने के
सामान से

बालकों को
अच्छी
लगती रहती हैं
मूंछें।

(20 जुलाई 2012, 7 PM, in train at Samastipur) 

Thursday, September 27, 2012

मैं इतना सोच सकता हूँ - 8


44

मैं सूरज को बुलाता हूँ मुझे जब सांझ लगती है
मगर सब शुष्क मूल्यों सी धरा भी बाँझ लगती है
अजब मौसम गजब वर्षा अजब गर्मी गजब सर्दी
मैं इतना सोच सकता हूँ मुझे क्यों सांझ लगती है

45

मुझे जंगल सुहाता है सभी को खग बताता है
मगर फिर भी पहन कपडे आदमी कह्कहता है
जनम से जानवर होकर मनन से जानवर होकर
मैं इतना सोच सकता हूँ क्यों हर पशु सर झुकाता है

46

मैं सबसे प्रेम करता हूँ मुझे स्नेह भाता है
नहीं कोई मेरा दुश्मन सभी से अच्छा नाता है
सही हों पग सही हो पथ सही गन्तव्य सही जो जग
मैं इतना सोच सकता हूँ मुझे जीवन सुहाता है

18.7.12 Shillong
===========
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Saturday, September 15, 2012

काला धन

रात को पाकर एकांत
सात वर्षीय बालक
कोने में ले गया
रुपयों से भरा थैला

साथ लेना
चाहता था वह
काला पत्थर - कोयला
आतुर हो
किए अथक असफल प्रयास
पर नहीं मिला उसे
एक टुकड़ा कोयले का
उसे याद आया
'कोयला तो अभी भी खदानों में ही है'

भागकर गया
निकाला काला रंग
अपने कलर बॉक्स से
और आ बैठा
उसी कोने में

रंग दिए
सारे नोट
काले रंग से

आज सुबह
उसने सुन लिया था
पिता को
फ़ोन पर
करते बातें ...

Poetic Punches

Red Light Was on
They Say
Power Had Gone

---

Tempered Roads
They say
Path Tempered
Affirming
Path Breakers

---

Delaying Delivery
Pain On The High
Save Saviors Save
Let It Not Die

---

Seamless Consistency
Homologous Urgency

---

Rain Drops
Droplets Brawl
Tendrils Call
Pain Drops

---

High Are Stakes
Non-regrettable Mistakes
Cranky Takes

---

Soulmates
Polity - Business - Mafia
Coalgates

---


Electricity Failure
Irregular Water Supply
Powerful Grievances
Powerless Appliances
Can We Really Call It
Power Crisis

---

Have You Seen Transformers
Not the ones which got Burst
But the ones Which are
Busy Transforming...


---

Friday, September 7, 2012

शिक्षा का व्यापार

नाई की दुकान पर
बिक रहा था सामान
माध्यम था रेडियो
एक निजी प्रबन्ध संस्थान के
लुभावने व भ्रामक
विज्ञापन द्वारा
बहुराष्ट्रीय कंपनियों में
छह अंकीय आय का
उदाहरण
प्रलोभन

आश्वासन

व्यापार की शिक्षा
या
शिक्षा का व्यापार

एक प्रश्न
कैसा होगा शिक्षा का स्वरुप
यदि शिक्षा होगी व्यापार

निवेश पर अधिक प्रत्याय
और अधिक प्रत्याय
लाभ
और अधिक लाभ

इन संस्थानों मे
शिक्षित होते छात्र-छात्राएं
उनकी जगह (सीट)  कहलाती है
माल, सामान या स्कन्ध
और
व्यापारी बेचते हैं
सामान
बाज़ार की भाषा में
बिकने वाला
सभी कुछ होता है
सामान या माल

बाज़ार में
दर्जी  की दुकान में
मोची की दुकान मे
परचून की दुकान मे
या फिर
विशालकाय 'माल' में
चलते-फिरते
बस में कार में
ट्रक में ट्रेन में
सब जगह
बाज़ार मे
नाई की दुकान मे
बिक रहा है सामान

यहाँ सरस्वती की
पूजा नहीं होती
यहाँ पूजे जाते हैं
लक्ष्मी व गणेश

कई संस्थानों का माल
नहीं रहा है बिक
उनके बड़े-बड़े
गोदामों में
सड़ रहा है
स्कन्ध
आजकल

अर्थशास्त्रीय सिद्धांतों का
पालन करते बाज़ार
मांग-पूर्ति का सिद्धांत
सीमांत उपयोगिता का सिद्धांत
प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों का नियम
बाजारू मूल्य
(मूल्यों का बाज़ार)

प्रतिस्पर्धा

मुझे ज्ञात है
जिस प्रकार
हलवाई की दुकान से
बिल्डिगों के व्यापार तक
तम्बाखू की खेती से
बीड़ियों व
पान मसाले के व्यापार तक
व्यापारी करते हैं निवेश
स्वयं या साझे में
उसी प्रकार
उतर आये हैं
वे
शिक्षा के व्यापार में
उनको बेचना है
सामान
कैसे भी
किसी को भी
येन केन प्रकारेण

छूट पर
एक के साथ एक मुफ्त
पच्चीस तीस चालीस
या पचास प्रतिशत
अधिक
उसी कीमत पर

बटोरे जाते हैं ग्राहक
कस्वे से
गाँव से
झूठे प्रलोभनों द्वारा

फिर भी
बहुतों के यहाँ
माल बेकार पड़ा है
सड  रहा है
खरीदारों की प्रतीक्षा में
मैं सोच सकता हूँ
व्यापारियों की पीड़ा
निवेश पर प्रत्याय की आशा
शायद इसीलिए
आज
बिक रहा है सामान
नाई की दुकान मे
बीड़ी पान की दुकान में

सुना है
आजकल
आयातित शिक्षा का बाज़ार
गर्म है
एक लोकल डिग्री के साथ
विदेशी डिग्री फ्री

एक प्रश्न
क्या कल यहाँ खुल जाएँगी
राईस मिलें
सुना है
इस बार धान की फसल अच्छी है

क्या कल यहाँ खुल जायेंगे
पांच सात नौ या ग्यारह
सितारा होटल
सुना है
आने वाले वर्षों मे
पर्यटन उद्योग का
बोलबाला होने वाला है
सरकारी सब्सिडी भी
बढने वाली  है

क्या यहाँ खुल जायेंगे
विशालकाय 'माल'
सुना है
फुटकर व्यापार में
विदेशी निवेश आने वाला है

क्या यहाँ खुल जायेंगे
बड़े-बड़े अस्पताल
सुना है
कीटनाशकों के निरंतर प्रयोग से
उत्पन्न होंगी
नई-नई बीमारियाँ

पैदा होंगे
नए-नए अवसर
और
इन सभी अवसरों को
परिणत किया जायेगा
पूँजी में

फ़िलहाल
नाई की दुकान में
बिक रहा है सामान

मुझे लगता है
शीघ्र ही
होंगी बंद
ये दुकाने
यदि नहीं बदलीं
आशाएं
आकांक्षाएं

परिभाषाएं।

(29.7.12 - लखनऊ - आज सुबह अपने छोटे  भाई के साथ नाई की दुकान गया, वहां FM Radio City पर एक प्रबंधन संस्थान  का विज्ञापन प्रसारित हो रहा था, उसको सुनकर इस कविता को लिखने की प्रेरणा मिली....27 जुलाई के हिंदुस्तान समाचार पत्र के लखनऊ संस्करण में एक खबर थी की इस शहर के 30 प्रबंध संस्थानों को इस वर्ष कोई छात्र नहीं मिला)

<29.7.12 in train Lucknow to Guwahati... 9 PM>

Sunday, September 2, 2012

पानी की कहानी

पानी की प्यास
पानी की आस
पानी की मांग
पानी का स्वांग
पानी की आवाज
पानी का आज
पानी का कल
पानी का बल

पानी की पूर्ति
पानी से स्फूर्ति

पानी की आशा
पानी की भाषा
पानी परिभाषा

पानी का रंग
पानी के प्रकार
पानी का माध्यम
पानी की सरकार

पानी के मालिक
मालिक का पानी
पानी की आंखें
आँखों का पानी
पानी के कागज़
कागज़ का पानी
पानी से बिजली
बिजली से पानी
पानी से पैसा
पैसे से पानी
पानी के रिश्ते
रिश्ते का पानी

पानी का बहाव
पानी का प्रभाव
पानी का भाव
पानी का दाव

पानी की मार
पानी का व्यापार

पानी का आना
पानी का जाना

पानी काला
काला पानी

आना है पानी
जाना है पानी
सीधी सच्ची
एक कहानी
पानी से जानी
पानी ने जानी
सीधी सच्ची
एक कहानी

(25 अगस्त 2012 - 6:30 प्रातः - शिलांग)
<नेहू प्रांगण में पिछले 6 दिनों से बिजली नहीं है, इसी कारण पानी की भी परेशानी है, कभी-कभी आता है, सीमित मात्र में,  उसका रंग अलग होता है, सभी निवासियों के चेहरे उदास हैं,  एक विडम्बना - कविता की प्रेरणा पानी के अभाव से उपजी>

Tuesday, August 28, 2012

मैं इतना सोच सकता हूँ - 7

38

मुझे हर हार में अपनी, सुहानी आस दिखती है
मगर जब जीत होती है, पुरानी प्यास बुझती है
मेरा गिरना, तेरा उठना, तेरा गिरना, मेरा उठना
मैं इतना सोच सकता हूँ, हार से जीत झुकती है।

10.7.12 - Shillong 9 pm

39

मुझे सब कष्ट प्यारे हैं, वो जीने के सहारे हैं, 
मगर फिर भी ख़ुशी के पल, ठहाकों में गुजारे हैं,
मेरा हँसना, मेरा रोना, मेरे आंसूं, मेरा हँसना,
मैं इतना सोच सकता हूँ, सभी आंसूं हमारे हैं।

11.7.12 - Shillong 11 pm

40
मेरा प्रकाश से लड़ना, अँधेरे जान लेते हैं
मगर क्यों पूर्णिमा को पूज, अमावस मान लेते हैं,
कभी तो जल दिए सा रौशनी कर सोच उनकी भी,
मैं इतना सोच सकता हूँ, सुमन खिल प्राण देते हैं।

12.7.12 - 8:30 AM , Shillong

41

मेरे अपने मुझे मेरी छिपी क्षमता दिखाते हैं,
कपिल सन्दर्भ देकर कोष का दर्शन बताते हैं,
मेरी क्षमता, मेरी सीमा, मेरी नीति, मेरी नियति,
मैं इतना सोच सकता हूँ, वो फिर भी तिलमिलाते हैं।

12.7.12 - 9 AM , Shillong

42

मुझे प्रकृति बुलाती है, हरी दुनिया दिखाती है,
मगर हर दाल पेड़ों की व्यथा पर मुस्कराती है
हरी डालें भरी डालें कटी डालें फटी आंखें
मैं इतना सोच सकता हूँ, मुझे जड़ से हिलाती हैं

12.7.12 - 9:30 AM , Shillong

43

मुझे बकवास का दर्शन बड़ा संजीव दिखता है
मगर हर शब्द अपने में मुझे गांडीव दिखता  है
जहाँ तक कल्पना पहुंचे मेरा एहसास पहुंचेगा
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं निर्जीव दिखता  है

12.7.12 - 9:40 AM , Shillong

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i.     मैं इतना सोच सकता हूँ -  (1-6 CLICK HERE)

ii.    मैं इतना सोच सकता हूँ - 2 (7-11 CLICK HERE)

iii.   मैं इतना सोच सकता हूँ - 3 (12-16 CLICK HERE)

iv.   मैं इतना सोच सकता हूँ -   (17 CLICK HERE)

v.    मैं इतना सोच सकता हूँ -   (18 CLICK HERE)

vi.   मैं इतना सोच सकता हूँ -   (19 CLICK HERE)

vii.  मैं इतना सोच सकता हूँ -  4 (20-22 CLICK HERE)

viii. मैं इतना सोच सकता हूँ -   (23 CLICK HERE)

ix.   मैं इतना सोच सकता हूँ -   (24 CLICK HERE)

x.    मैं इतना सोच सकता हूँ - 5 (25-27 CLICK HERE)

xi.   मैं इतना सोच सकता हूँ - 6 (28-37 CLICK HERE)

Wednesday, August 22, 2012

कुत्ते और आदमी

मैंने कुत्ते भी खूब देखे हैं
दुम हिलाकर सलाम करते हैं

आहटों की समझ चुनिंदा है
दुश्मनों पे सवार रहते हैं

पैर उठता है नाक घुसती है
वो भी इतना ख्याल रखते हैं

शांत रहकर भी दुम हिलाते हैं
अपने मालिक की धार करते हैं

उसकी  तहजीब आदमी सी है
भौंककर बेजुबान रहते हैं

उसकी निष्ठा विशिष्ट होती है
आदमी सब तमाम करते हैं

आदमी कुछ तो अलग हो उनसे
जिनको कुत्ते सलाम करते हैं

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25.7.12 - बरेली - 11 AM 

Monday, August 13, 2012

कब होगा सांप्रदायिक तनाव

देखकर
अपनी
सिलने दी ब्लाउज
पहने
पड़ोसन को
महिला खीज रही है

प्रतीक्षा कर रही है
आखिर कब होगा
फिर से
सांप्रदायिक तनाव

इस बार
तैयार रहूंगी मैं
अपने पति-परिवार के साथ
लूटने को
दर्जी  की दुकान

उधर
दर्जी
देखकर महंगाई
बाजार-भाव
देखकर
रेडीमेड कपड़ों के
बाज़ार का प्रभाव 
खीज रहा है

प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
फिर से
सांप्रदायिक तनाव

योजना बना रहा है
स्वयं रखने की
दुकान मे पेट्रोल
मानो
कह रहा हो
जला दो इसे
राख कर दो
सुना है
इस बार
सरकार देगी
अच्छा मुआवज़ा


मोहल्ले भर की
शादियों मे बजाने वाले
ब्रास-बैंड का मालिक
जिसने मोहल्ले भर की
खुशियों में
देखीं अपनी खुशियाँ
जिसने सभी की
खुशियों में
लगाये हों चार चाँद
जिसकी
गाड़ी व घर में
लगा दी गई थी आग
पिछली बार

प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव
तैयार है
इस बार
लगवाने को आग
अपने घर व गाड़ी में
उसे भी भनक है
दर्जी की तरह
इस बार
अच्छी होगी
मुआवज़े की रकम
अभी निबटा है
निकाय चुनाव
और तैयारी है
लोकसभा चुनाव की

बीमा  कंपनी का एजेंट
जो प्रायः
समझाता था
बीमा के
फ़ायदे

क़ायदे
कौन पूछता है उसे
सब-कुछ
शांतिपूर्ण होने से
आखिर उसको भी
करना है पूरा
अपना लक्ष्य (टार्गेट)
बचाने को अपनी
बाजारू साख
खीज रहा है वह

प्रतीक्षा कर रहा है
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव

उधर
सोई हुई लाठियां
आपस मे
बतिया रही हैं
बाँट रहीं हैं
अपने-अपने
पुराने अनुभव
पिछली बार के
इतरा  रहीं हैं
अपने-अपने
निशानों पर
धर्मभेद से परे
रक्तभेद से परे
सोई हुई लाठियां

प्रतीक्षा कर रहीं हैं
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव

रोज़ कमाई  करने वाला
मजदूर
होता है त्रस्त
सांप्रदायिक तनाव के दौरान

उसके घर का चूल्हा
जलता है
कितनो के घर बनाने से
वो
मस्जिद मे
ईंट रखता है
मंदिर में
पत्थर लगाता  है
वो
बनाता है रास्ता
सभी के चलने के लिए
धर्म जाति व पंथ से परे
उसे मालूम ही नहीं होता
कौन चलेगा इस सड़क पर
कौन भागेगा
लेकर
लाठियां तलवार व  बन्दूक
इस सड़क पर

रोज कमाई  करने वाला
मजदूर
हमेशा
कामना करता है
शांति की
सांप्रदायिक  सदभाव की

बाकी शेष सब
किसी ना  किसी रूप में
प्रतीक्षा कर रहे हैं
आखिर कब होगा
सांप्रदायिक तनाव

पिछले दंगों के दौरान
घर मे आनंदित
सरकारी अधिकारी व कर्मचारी
अपने परिवार के साथ
समय बिताते व्यवसायी

पिछले दंगों के उपरान्त
प्रोन्नत हुआ
पत्रकार
प्रोन्नत हुए
पुलिस अधिकारी व कर्मचारी
जीते हुए नेता
सभी
प्रतीक्षा कर रहे हैं
आखिर
कब होगा सांप्रदायिक तनाव

छोड़कर
केवल उस रोज कमाई करने वाले
मजदूर के
जो सोचता है
(दंगों के दौरान)
आखिर
कब बंद होगा दंगा
और
कब जलेगा
उसके घर का चूल्हा।

(25 जुलाई 2012, 3:15 PM  - बरेली - during curfew)