Saturday, January 22, 2011

तीन रुबाइयां

चश्म आँखों ने सफ़र को देखा
मेरी माँ ने हर कहर को देखा
हर फलसफे से प्यार बढकर है
उनकी आँखों ने इस ज़हर को देखा
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सड़क पर भागते शव को देखा
धुंद मे टिमटिमा पहर देखा
दौडते-भागते कटी हर शब्
रुकते-थकते ये मंज़र देखा
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भावना आँख से छलकती है
प्यास से रोशनी चमकती है
मेरी बेटी के प्रश्न जैसे हों
उनमे अच्छी सुबह सी दिखती है

(21st Jan 2011, 6:30 AM, travelling from Guwahati to Shillong in Taxi)

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