Thursday, February 28, 2013

मैं इतना सोच सकता हूँ - 15


64

मैं बदलना चाहता हूँ क्यों सरल में हर जटिल को
और देना चाहता हूँ इक दिशा बहते सलिल को
प्रश्न मुझको भेद करते सोच पर्वत पात ढलते
सोच सकता हूँ मैं इतना श्वेत होना उस कपिल को

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Friday, February 22, 2013

मैं इतना सोच सकता हूँ 14


63

फूल सूखे कह रहे हैं हम पुराने हो गये हैं
सूख कर रिश्ते सभी जर्जर बहाने हो गये हैं
फूल रिश्ते पत्तियां सब डालियों से दूर हैं
सोच सकता हूँ मै इतना आने-जाने हो गये हैं

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Thursday, February 14, 2013

मैं इतना सोच सकता हूँ - 13

61

मैं सुनना चाहता हूँ गीत मंगल और सुमंगल के
है जीवित हो चुकी आशा बृहद विस्तार जंगल के
मेरे विश्वास में कोई कमी होगी तो क्यों होगी
मैं इतना सोच सकता हूँ सधे संवाद जंगल के

62

मैं पड़ना चाहता हूँ पुस्तकें स्नेह वंदन की
सरल हो व्याकरण उपयोग तम गंध चंदन की
मगर क्यों द्वेष भरती पुस्तकें बाज़ार होती हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ लगी क्यों आस बस धन की

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Friday, February 8, 2013

मैं इतना सोच सकता हूँ - 12


60

दिखाई दे रहे सम्बन्ध बेमानी से लगते हैं
सभी अनुबंध में बंधकर नरक पानी से लगते हैं
वो इक एकांत में बैठा उन्ही धागों को सीता है

Friday, February 1, 2013

मैं इतना सोच सकता हूँ - 11

57

मुझे नवग्रह बताते हैं जो कांटो को सजाते हैं
मगर हम हाथ की रेखायेँ सुकर्मो से जगाते हैं
बहुत से कष्ट सहकर हम कठिन प्रयास करते हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ दुकर्मो से बचाते हैं

58

 मेरा विश्वास संशित है मेरा अभ्यास प्रेरित है
मगर क्यों लिपि नियंत्रित हो नहीं आभास किंचित है
मेरा चिंतन तेरी द्रष्टि नहीं संयोग लगते हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ नहीं प्रयास वंचित है

59

मैं रिश्ते ढूँढता हूँ शहर में हर दम मशीनों से
सजाकर जो दिखाती है नई दुनिया बगीचों से
मुझे कल-कारख़ाने सब पुराने ही सुहाते हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ यही अनुभव गलीचों से

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