Tuesday, April 26, 2011

रेलवे स्टेशन पर

ख़रीदा, 
खोला, 
पड़ा,
बिछाया, 
हाथ पोछा, 
रगडा,
मोड़ा, 
गेंद बनाया, 
फेंका.

आंखें खिलीं, 
एक आशा, 
बच्चे झपटे, 
एक ने पाया, 
उठाया,
संजोया, 
खोला, 
चाटा,
उसमे अपना चित्र पाया.

एक रोष,
उसने उसके चिथडे किये, 
जैसे वाक्यों से शब्द,
शब्दों से अक्षर, 
सब अलग हो गए हों.

फिर उसको 
तेज रफ़्तार से,
चलती ट्रेन के सामने 
उड़ा दिया.
ट्रेन कुचल गई,
बढ गई आगे,
अपने गन्तव्य की ओर.

मैं सोचता रहा, 
कैसा आज,
कैसा जागरण, 
कैसा उजाला,
कैसा भास्कर, 
कैसा नव-भारत,
कैसा हिंदुस्तान. 

24 April 2011, Bareilly to Delhi (Intercity Express, 9:40 AM)

Tuesday, April 19, 2011

कभी ना भूख बदले

रंग बदले रूप बदले,
हर कदम स्वरुप बदले
बोझ कन्धों पर लिए 
हर कष्ट हर सपना वही था 
द्रष्टि, अंतर्ध्वनि, दिशा, 
रुकना कभी सीखा नहीं था
रीड़ का सौदा करूँ क्यों
प्रस्तरों का भय नहीं था
अस्मिता कैसी दया क्यों
वीर यदि शमशीर बदले
प्रश्न यह है हित अहित कर
क्यों ह्रदय का पीर बदले
मात्र यह प्रयास हर पल
अब कभी ना भूख बदले
हर कदम स्वरुप बदले
रंग बदले रूप बदले
पर कभी ना भूख बदले

Thursday, April 7, 2011

क्रिकेट विजय

संबंधों का रूप खेल में
कर की शोभा सभी मेल में
उच्च शिखर ज्यों पहुँच गए हम
प्रबल, प्रखर प्रहार सहे हम
उत्तर, प्रश्न सभी संचित थे
एक जीत से ही वंचित थे

श्रम, श्रद्धा, क्षमता संभवतः 
जोश, पराक्रम, विजय अंततः
उत्सव, स्वागत, चर्चा, हर्षा
पुरुस्कार व धन की वर्षा

संचित विजय भाव को रक्खो 
स्नेह, नीति दाव को रक्खो 
दायित्वों का वडा भार है
हार विजय का ही उपहार है...

:::विजय कुमार श्रोत्रिय::: शिलांग ::: 7 April 2011:::
(भारत की क्रिकेट विश्व कप मे जीत को समर्पित, 2 April 2011 को मुंबई के वानखेड़े मैदान पर भारत ने श्रीलंका को विश्व कप फ़ाइनल मे हराया) 

Friday, April 1, 2011

दर्द

उनकी आँखों ने कहा
मेरी आँखों ने सुना
मेरे होठों ने पिया
उनके होठों से गिरा

मेरे हांथों ने सुना
उनके क़दमों ने कहा
उनके गालों पे सजा
मेरे होठों का कहा

एक सन्नाटा सा था
सुबह चिड़िया ने कहा
आँख क्यों दर्द सहे
स्वप्न क्यों दर्द बना.

शिलांग ... १ अप्रैल २०११ ...