Tuesday, April 19, 2011

कभी ना भूख बदले

रंग बदले रूप बदले,
हर कदम स्वरुप बदले
बोझ कन्धों पर लिए 
हर कष्ट हर सपना वही था 
द्रष्टि, अंतर्ध्वनि, दिशा, 
रुकना कभी सीखा नहीं था
रीड़ का सौदा करूँ क्यों
प्रस्तरों का भय नहीं था
अस्मिता कैसी दया क्यों
वीर यदि शमशीर बदले
प्रश्न यह है हित अहित कर
क्यों ह्रदय का पीर बदले
मात्र यह प्रयास हर पल
अब कभी ना भूख बदले
हर कदम स्वरुप बदले
रंग बदले रूप बदले
पर कभी ना भूख बदले

3 comments:

  1. विजय कुमार जी,

    हर कदम आपकी कावितये बदले.
    हर कदम वह आपनी मंझिल को छु ले.
    जाय आपकी कविता उस मुकाम पर.
    वहा, जहा उसको कोई ना बदले !

    आपकी कविता बहुत सुन्दर है!

    कैलास नरवडे.

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  2. सचमुच भूख नहीं बदलनी चाहिए... भूख का विम्ब बढ़िया लिया है अंत में... सुंदर कविता..

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  3. आदमी की भूख का स्वरूप न बदले .. क्या बात कही है।

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