मैंने पड़ा था:
कागज़ के फूल
कागज की नाव
मैंने देखे:
कागज के कोण
कागज के रिश्ते
कागज़ के पैसे
कागज़ के बिल
देखा:
कागज का सूखा
कागज़ की बाड़
कागज़ का पानी
कागज़ के पुल
देखी - कागज़ की सजा
देखा - कागज़ का पुरुस्कार
देखे - कागज़ के सपने
कागज के वार
कागज़ की उड़ान
कागज़ की शान
कागज़ का द्वेष
कागज़ का प्यार
आजकल प्रयास कर रहा हूँ
सुनने व समझने की
कागज़ की भाषा
शिलांग ::: १ जुलाई २०११ ::: ११ बजे रात्रि :::
शानदार
ReplyDeletefabulous writing...
ReplyDeletekeep on writing such wonderful poems.pa....
sir your poem has just astonoshing effect... what an expression sir... the word'kagaz' has the mesmerising effect.. wonderul.. the symbol of paper is playing on my mind...
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
ReplyDeletelovely verses...it really is an exceptional expression on the system-relationship-materialistic world... outstanding spoof...
ReplyDeleteKumar Rajesh
very sharp, crisp n hitting...gud one...
ReplyDeleteखूब कही कागज की कहानी.
ReplyDeletekaagaj ki ahamiyat insaani jubaan se bhi jyada hai.aapki kavita pahli bar padhi bahut prbhaav shali lagi.atiuttam.
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