सड़क पर कांच के
टुकड़े पड़े कुछ बात कहते हैं
किसी की दौड़
मंजिल बिघ्न संशय पात कहते हैं
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सभी गंतव्य
सीधे हैं अगर हों साथ सच मोती
सड़क पथ द्रष्टि
देती है सुझाये युक्ति नवज्योति
सड़क ले जाती है
सबको सभी के घर स्वयं चलकर
मगर अपने
उसूलों से वो टस से मस नहीं होती
मैं अक्सर
देखकर गड्ढा सड़क पर चेत होता हूँ
मगर फिर भी
मुसाफिर पर वो इक आंसूं नहीं रोती
जो सिगरट को
दबाकर यों सड़क पर पीस देते हैं
वो उनकी वेदना
को पढके हंसती है नहीं रोती
हमारी जिंदगी
की बड रही रफ़्तार कहती है
सड़क बस सीख
देती है कभी भी वो नहीं सोती
उसे गति गीत
गाने से नहीं रोको नहीं टोको
कोई प्रतिफल
नहीं सोचे न ही हीरे न ही मोती
सड़क ले जाती है
सबको सभी के घर स्वयं चलकर
मगर अपने उसूलो से वो टस से मस नहीं होती
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteवरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!
मंगलवार 29/01/2013को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं .... !!
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .... !!
धन्यवाद .... !!