आदमी और मौत 1 से आगे …
मौत सबकी है आपकी भी है
क्यों भला लड़ के लोग जीते हैं
जिंदगी प्यार की कहानी है
इसको बुनते हैं आओ सीते हैं
मैंने सपने भी कुछ सजाये हैं
उनको बाटूँगा आप हंस देंगे
आपकी उस हंसी के कारण से
स्वप्न बिखरेंगे प्राण भर देंगे
आप हँसते रहेंगे जीवन भर
मौत आएगी लौट जाएगी
आप उसको गले लगायेंगे
हाँथ झटकेगी मुस्कराएगी
आप रोकर उसे पुकारेंगे
उसको अब कुछ हंसी तो आएगी
उसकी स्मृति उबाल पर होगी
अट्टहासों से तुम्हे सताएगी
उसके हंसने में आप रोओगे
और तड़पोगे छटपटाओगे
तुम्हे अनुनय-विनय थकाएगी
भूत की पुस्तकें मंगाओगे
पृष्ट दर पृष्ट उड़ रहे होंगे
सभी स्म्रतिचिंह पाओगे
शीत वायु उष्ण ज्वर देगी
दर्पणों को सभी मंगाओगे
ह्रदय के शूक्ष्मतम तिकोने में
कर्म और काण्ड याद आयेंगे
आत्मबल साथ छोड़ता होगा
'अहम्' विदाई गीत गायेंगे
मौत दर्पण को हाथ में लेकर
तुमको तुम से मिला रही होगी
और दुनिया तुम्हारी आंखें देख
अपने आंसू बहा रही होगी
आप से तुम पर आ गया हूँ मैं
तुम से तू हो तो कुछ नहीं कहना
एक बालक पुकारता माँ को
तुम से तू पर रही सही है ना
इसलिए कहता हूँ औरों पे छोड़ दो हँसना
वरना रोओगे तुम मौत भी ना आएगी
करवटें छीन रात बिस्तर पर
तुमको हर पल बहुत सताएगी
मेरे सन्दर्भ सोच कर देखो
तुमको सब कुछ समझ में आएगा
एक दर्पण रखो हमेशा साथ
तुमको अंतःकरण सिखाएगा
दोष औरों पे लगा ना पाओगे
रोष करना भी सुधर जायेगा
मौत फिर हंसके तुमसे बोलेगी
प्राण मिथ्या अधर पे आयेगा
तुम्हारी राह देख रो लेगी
पास आएगी सार बोलेगी
साधना सत्य की सजगता से
साथ जाएगी पाट खोलेगी
अपने जीवन को इस तरह ढालो
प्रेम से देखो प्रेम से बोलो
प्रेम सिखलाओ अपने मित्रों को
प्रेम की चाबी से ताले खोलो
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