व्यक्ति यदि व्यवधान का कारण बने तो जान लो
व्यक्ति ही साधन, निवारण, खोज में सहयोग देंगें
तुम अगर सम्राट बन संशय, सघन के साथ होगे
सब तुम्हारी दीप्ति के दोष का प्रयोग होंगे
साथ लो सबको सभी का साथ तुमको प्राण देगा
मान लो इसको इसी से सोच का निर्माण होगा
यदि तुम्हारा 'मैं' तुम्हे वाधित करे स्वीकारने को
मान लेना कट गया जीवन यहीं विश्राम होगा
क्यों हुआ विद्रोह इसको जान लो अच्छा रहेगा
क्यों लगी है आग यदि संज्ञान लो अच्छा रहेगा
कारकों के कारणों को कुछ समय देकर समझना
बिन सजे संवरे धवल दर्पण सभी सच्चा कहेगा
भूल जाओ भूत की भाषा भले 'मैं' रोकता हो
दृष्टि डालो नव तिमिर पर ह्रदय कुछ भी सोचता हो
काठ की कुर्सी किसी के साथ कुल जीवन नहीं है
जामवंतो से हुआ निर्मित भले पद टोकता हो
उठो उठकर रीढ़ को कुछ लोच देकर आंख पोछो
उस अमावस रात का तुम ऋण उतारो हाथ पोछो
पूर्णिमा का चांद अपनी रोशनी संचित किये है
झुको झुककर सूर्य के सम्मुख नया निर्माण सोचो
खोल वाहें खिलखिलाओ हंसो अट्टाहस करो तुम
मिलो मिलकर झूमलो खुलकर जरा साहस करो तुम
नहीं कटु स्मृतियां सदा व्यक्तित्व से संलग्न रहतीं
उठ अंधेरों की विदा का आज दुःसाहस करो तुम
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बहुत ही सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletethanks
ReplyDeletedhanyavaad
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