सब कुछ कहाँ जा रहा है
कहाँ से कहाँ आ गए हम
वहाँ से यहाँ आ गए हम
यहाँ से कहाँ जा रहे हैं हम
चार चूड़ी वाली कार को देखता हूँ
जिस पर कुत्ते बैठ रहे हैं
कुत्ते सड़क के शेर हो गए हैं
और हम बन गए हैं घर घुस्सू कुत्ते बिल्ली
घर से बाहर निकलता हूँ
तो पहले मुखौटा लगाता हूँ
एक के ऊपर एक और
मुखौटों को घर पर बनाया जा रहा है
रंग - आकार - प्रकार के अनुसार
बंद हैं, मंदिर - मस्जिद
मगर शराब की दुकानों के बाहर
बेशुमार भीड़ है
सरकार भी कुछ ऐसा ही चाहती दिखती है
क़ैदी छोड़े जा रहे हैं जेलों से
और नए प्रकार के जेल बनाए जा रहे हैं
पुलिसवाले सड़कों पर खाना बाँट रहे हैं
अर्धसैनिक बल शराबियों को
सीधी लाइन में
सफेद गोले के भीतर रखने में व्यस्त हैं
और तो और
वे इस प्रक्रिया में संकृमित होकर
अस्पतालों में भरती होने पर विवश हो रहे हैं
कहीं-कहीं पुलिस वाले ताली बजा रहे हैं
डॉक्टर अस्पताल से घर की जगह
होटल में जा रहे हैं
डॉक्टर अस्पतालों में भर्ती भी हो रहे हैं
अस्पताल कर्मी माँ अपने बच्चे से मिल नहीं पा रही है
सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता
कुछ कुछ एक सा बोल रहे हैं
नेता जनता को इकट्ठा होने से मना कर रहे हैं
मज़दूर अपने घर, अपने देस, अपने गाँव लौट रहे हैं
जान की परवाह किए बग़ैर
पैदल, साइकिल पर, रिक्शे पर, ठेले पर, टेम्पो से, टैंकर में भरकर
हर क़ीमत पर, किसी भी तरह
वे घर, अपनों के बीच जाने को आतुर हैं
जान की परवाह किए बगैर
उनकी इस व्याकुलता के समक्ष
भूख ने भी घुटने टेक दिए लगते हैं
अनाज, फल, साग-सब्जी
सब गाँव से आता है
मज़दूर भी
और इन मजदूरों के कंधों पर लदा कोरोना
शहर से गाँव जा रहा है
हम सब भी
कभी ना कभी
किसी न किसी गाँव से क़स्बे में
क़स्बे से नगर और फिर महानगर में
आए थे
पार्क. बाज़ार, सड़क,
स्कूल, कालिज, पुस्तकालय
सभी सार्वजनिक स्थानों पर
पसरा है सन्नाटा
और घरों में रह रही है रौनक़
यह कैसी बेमौसम बरसात है
उल्टी गंगा बह रही है
सूरज पूरव से उगकर
पश्चिम के रास्ते
फिर पूरव की ओर आ रहा है
मन में विचार आ रहा है
सब कुछ कहाँ जा रहा है
नीला आकाश दिखाई दे रहा है
पर्वत चोटियाँ साफ लग रही हैं
नई-नई दिखने वाली
विलुप्त होती दुर्लभ चिड़ियाँ दिखाई दे रही हैं
जानवर शहरों में प्रवेश कर रहे हैं
चीन मे बने मोबाइल फ़ोन से
चीन की बुराई हो रही है
विश्वशक्ति माना जाने वाला अमरीका
पूर्णतः त्रस्त है
उसके परमाणु यंत्र आज बेकार पड़े हैं
एक अदृश्य दुश्मन ने
सब कुछ अस्त व्यस्त कर दिया है
छुआछूत का नियमतः पालन हो रहा है
हम आगे जा रहे हैं या पीछे
एक विचार है मन में
कहाँ से कहाँ आ गए हम
यहाँ से कहाँ जा रहे हैं हम
किसान अपनी फसलें जला रहा है, बहा रहा है
मेरा देश कहाँ जा रहा है
केवल एक विचार आ रहा है
कहीं यह संकेत तो नहीं है एक युगांत का
एक युग का दुखद अंत
मुझे क्यों ऐसा लग रहा है
कि यह सब संकेत हो सकते हैं
एक नूतन सुबह के
एक सुखद कल के
एक सुदृढ़ भविष्य के
कहीं पढ़ा था
जो चीज आप को चैलेंज करती है
वही आपको चेंज करती है
श्रमिक अपने घर आ रहा है
एक नई शुरुआत करने
यही सुना था
घर से ही होती है
नई शुरुआत
और बड़ी कष्टदायक व हृदयविदारक
होती है यह प्रक्रिया
और तो और
वे इस प्रक्रिया में संकृमित होकर
अस्पतालों में भरती होने पर विवश हो रहे हैं
कहीं-कहीं पुलिस वाले ताली बजा रहे हैं
डॉक्टर अस्पताल से घर की जगह
होटल में जा रहे हैं
डॉक्टर अस्पतालों में भर्ती भी हो रहे हैं
अस्पताल कर्मी माँ अपने बच्चे से मिल नहीं पा रही है
सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता
कुछ कुछ एक सा बोल रहे हैं
नेता जनता को इकट्ठा होने से मना कर रहे हैं
मज़दूर अपने घर, अपने देस, अपने गाँव लौट रहे हैं
जान की परवाह किए बग़ैर
पैदल, साइकिल पर, रिक्शे पर, ठेले पर, टेम्पो से, टैंकर में भरकर
हर क़ीमत पर, किसी भी तरह
वे घर, अपनों के बीच जाने को आतुर हैं
जान की परवाह किए बगैर
उनकी इस व्याकुलता के समक्ष
भूख ने भी घुटने टेक दिए लगते हैं
अनाज, फल, साग-सब्जी
सब गाँव से आता है
मज़दूर भी
और इन मजदूरों के कंधों पर लदा कोरोना
शहर से गाँव जा रहा है
हम सब भी
कभी ना कभी
किसी न किसी गाँव से क़स्बे में
क़स्बे से नगर और फिर महानगर में
आए थे
पार्क. बाज़ार, सड़क,
स्कूल, कालिज, पुस्तकालय
सभी सार्वजनिक स्थानों पर
पसरा है सन्नाटा
और घरों में रह रही है रौनक़
यह कैसी बेमौसम बरसात है
उल्टी गंगा बह रही है
सूरज पूरव से उगकर
पश्चिम के रास्ते
फिर पूरव की ओर आ रहा है
मन में विचार आ रहा है
सब कुछ कहाँ जा रहा है
नीला आकाश दिखाई दे रहा है
पर्वत चोटियाँ साफ लग रही हैं
नई-नई दिखने वाली
विलुप्त होती दुर्लभ चिड़ियाँ दिखाई दे रही हैं
जानवर शहरों में प्रवेश कर रहे हैं
चीन मे बने मोबाइल फ़ोन से
चीन की बुराई हो रही है
विश्वशक्ति माना जाने वाला अमरीका
पूर्णतः त्रस्त है
उसके परमाणु यंत्र आज बेकार पड़े हैं
एक अदृश्य दुश्मन ने
सब कुछ अस्त व्यस्त कर दिया है
छुआछूत का नियमतः पालन हो रहा है
हम आगे जा रहे हैं या पीछे
एक विचार है मन में
कहाँ से कहाँ आ गए हम
यहाँ से कहाँ जा रहे हैं हम
किसान अपनी फसलें जला रहा है, बहा रहा है
मेरा देश कहाँ जा रहा है
केवल एक विचार आ रहा है
कहीं यह संकेत तो नहीं है एक युगांत का
एक युग का दुखद अंत
मुझे क्यों ऐसा लग रहा है
कि यह सब संकेत हो सकते हैं
एक नूतन सुबह के
एक सुखद कल के
एक सुदृढ़ भविष्य के
कहीं पढ़ा था
जो चीज आप को चैलेंज करती है
वही आपको चेंज करती है
श्रमिक अपने घर आ रहा है
एक नई शुरुआत करने
यही सुना था
घर से ही होती है
नई शुरुआत
और बड़ी कष्टदायक व हृदयविदारक
होती है यह प्रक्रिया
Commendable Sir
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
DeleteKafi achhi hai sir
ReplyDeletedhanyavaad.
ReplyDeletevijay