Saturday, September 18, 2010

मेरे कान

कान,
क्यों वो सुनते हैं
जो सुनना नहीं चाहता हूँ मैं
या,
दिखाना नहीं चाहता हूँ मैं
कि मैने कुछ सुना.

मैं
सुनना चाहता हूँ
वह सब
जो लोग सुनाना चाहते हैं
फिर क्यों
मेरा चुनाव
व्यक्तियों का है
न कि
वे "क्या" सुनाना चाहते हैं
उसका...

(17th Sept 2010, Shillong)

8 comments:

  1. बहुत सही कहा कि यह "मेरा चुनाव" है कि मैं क्या सुनूं।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें और दो क्षणिकाएं, मनोज कुमार, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

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  2. बहुत सही कहा है...अच्छी रचना...
    http://veenakesur.blogspot.com/

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  3. bahut sahi kahaa aapne ...........badhiya

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  4. यथार्थ से जुडी हुई सुन्दर रचना!

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  5. umda soch ka nazara dikha kavita me sir.. Hindi paste nhin ho rahi is box me.. :(

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  6. log toh sunana
    Chahtey hain anek prakar ke baatey
    kabhi khatta toh
    kabhi meetha
    aur phir kabhi kissi ke
    burai

    Par bahut kam log sunatey hain Veeron ki
    Veer gatha
    Joh aaneywala dinon mein
    naya samaj ka neemb dalega
    aur
    samaj mein
    bhabya parivartan aur sadhuta layega

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  7. यथार्थ से जुडी हुई सुन्दर रचना!

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  8. अजय श्रोत्रियOctober 18, 2010 at 7:25 PM

    सबकुछ सुनना चाहते हैं परन्तु....पृदशित नहीं करना चाहते
    वास्तविकता हैं ......... सभी की....

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