मेरी कविताएं
Sunday, October 12, 2014
सोच
वो जैसा है नहीं मुझको
दिखाई देता है वैसा
मेरा चश्मा मुझे आगाह
करता है कपट कैसा
सफल जीवन नहीं यदि
कष्ट पीड़ा साथ जीवन में
मैं इतना सोचता हूँ
क्यों दिखाई देता
बस पैसा
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