मेरी कविताएं
Saturday, March 7, 2015
दस्तूर
यह क्या दस्तूर दुनिया का
धनी धनवान होते हैं
गरीबी आँख आंसूं पी रहे
शमशान होते हैं
अजब सा द्वन्द रेखाओं में
बंटकर वार करता है
मैं इतना सोचता हूँ
क्यों अगर भगवान् होते हैं
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