Monday, March 7, 2016

चप्पलें

[प्रो0 विद्यानंद झा जी द्वारा उनके फेसबुक पेज पर इस चित्र को देखकर मिली प्रेरणा]
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कहाँ चले गए हो तुम
हमें छोड़कर अकेला
इन सूखे पत्तों के बीच 
हम दोनों एक दूसरे से बात कर तो रहे हैं
परन्तु
तुम्हारे बिना हम अधूरे हैं
अधूरा है
हमारा अस्तित्व
तुमसे ही तो है
हमारा जीवन
तुम्हीने तो हमें दी है दिशा

मोमबत्ती की भांति
हम जल रहे हैं
घिस रहे हैं 
परन्तु फिर भी
हममे तुम्हे मंजिल पर पहुँचाने की
क्षमता है
साहस है

तुम्हे हमारी क्षमता पर
विश्वास नहीं है क्या
या तुम
परिवर्तन की इस लहर में बह रहे हो
क्या तुम पर बाज़ार हावी हो रहा है
ओर तुम तलाश में निकल गए हो
विकल्पों की

विश्वास करो 
हममे तुम्हे मंजिल पर पहुँचाने की
क्षमता व साहस दोनों है
हाँ बाज़ार से लड़ने की क्षमता
अवश्य क्षीण हो गयी है अब

यों तो हम पर तुम्हारा पूरा बजन है
लेकिन हम फिर भी थके नहीं हैं
हमारा अस्तित्व 
इसी से तो है
तुम्हे किसी भी प्रकार की आत्मग्लानि
करने की कोई आव्यश्यकता नहीं है

हमारे जीवन का लक्ष्य भी तो यही है
सबकुछ सहकर तुमको दिशा देना
एक ममतामयी माँ की भांति

क्या तुम
पास के तालाब में
अपनी प्यास बुझाने चले गए हो
हमारी प्यास की चिंता किये बिना
जैसा अक्सर बच्चे किया करते हैं
अपने मातापिता की वृद्धावस्था में  

हमको कोई भी शिकायत नहीं है तुमसे
आजाओ

अभी
अभी-अभी 
इस वृक्ष से गिरे
एक पत्ते से
तुम्हारे स्पर्श की
खुशबू आ रही है
लगता है 
तुम अपनी भूख मिटा रहे हो 
इस वृक्ष पर ही

फिर क्यों
तुम्हारे पास होने का एहसास
हमें नहीं हो रहा है

इस पत्ते को
नहीं पता है हमारे-तुम्हारे
रिश्ते की घनिष्टता
के बारे में
वह तुम्हारे स्पर्श से उत्पन्न
स्फूर्ति का वर्णन
बड़ी आतुरता के साथ कर रहा है
अपने मित्रों से

यदि तुम्हारी भूख-प्यास मिट गई हो
तो आजाओ
अभी बहुत दूर तक चलना है हमको
साथ-साथ
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