[प्रो0 विद्यानंद झा जी द्वारा उनके फेसबुक पेज पर इस चित्र को देखकर मिली प्रेरणा]
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देखो
ध्यान से देखो
किस प्रकार तुमने
टुकड़े कर दिए
हमारे परिवार के
हमारी शोभा हमारे अलग रहने में भी है
हममे
अभी भी सुगंध का वास है
अभी भी
हम सक्षम हैं
तुम्हारा ध्यानाकर्षण करने में
तुमने
हमारा त्याग तो किया
परंतु भूल गए
कि हमारा जीवन
त्याग से ही प्रारम्भ होता है
हम अपने लिए कभी नहीं जीते
समर्पण ही तो हमारा जीवन है
हम मंदिर की शोभा का कारण भी हैं
और
अंतिम यात्रा में तुम्हारे सहयात्री भी
देखो
हमको
इन चार कन्धों पर
जा रहे निर्जीव पथिक के ऊपर
समर्पित किया गया
हम अपनी यात्रा को विराम नहीं देना चाहते थे
सो हमने ज़मीन पर रहना
बेहतर समझा
सड़क पर हमें
कुचले जाने का भय तो है
परंतु अपने परिवार से
जुड़ने का अवसर भी तो
यहीं है
हम कब तक
रह सकते हैं दूर काँटों से
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