[प्रो0 विद्यानंद झा जी द्वारा उनके फेसबुक पेज पर इस चित्र को देखकर मिली प्रेरणा]
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कोई वीरानी सी वीरानी है
उनको अपनी व्यथा सुनानी है
उड़ गए साथ छोड़ सब फिर भी
मुझमे बाकी अभी कहानी है
मौसमों की अजीब आदत है
बसन्त के बाद शीत आनी है
सूखना अंत हो नहीं सकता
कोपलों में अभी भी पानी है
ऐसी वीरानी भी जरुरी है
असलियत है नहीं बेमानी है
अँधेरा-रोशनी रहें मिलजुलकर
जिन्दगी की यही कहानी है
मेरा जीवन तो एक मिथ्या है
सत्य है मृत्यु जोकि आनी है
भागते दौड़ते रहें हम सब
पतंग सपनों की जो उड़ानी है
कोई वीरानी सी वीरानी है
मुझमे बाकी अभी कहानी है
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