[चित्र प्रो0 विद्यानंद झा जी की फेसबुक वाल से साभार]
सब छोड़ देते हैं साथ
अपने भी
फिर भी
लोगों की नज़र
पड़ ही जाती है
पराये-अपने के भेद से परे
कितनी ख़ूबसूरत थी
ये दुनिया
जब तुम्हारा साथ था
हम दोनों कितनो का
सहारा थे
बरसात में
कड़ी धूप में
अब क्या है
मेरा अस्तित्व
तुम्हारे बिना
और तुम्हारा
मेरे बिना
तुम अब
उड़ रही होगी
बिना किसी की
मुट्ठी में बंधे
मुट्ठी में बंधे
आ जाओ
मैं कष्ट में हूँ
तुम्हारे साथ न होने पर
मुझे ठोकरें पड़ रही हैं
हाथ से सीधे पैरों में आ गिरी हूँ
मुझे अब
ज्ञात हो रहा है
तुम्हारे साथ का महत्व
आ जाओ
मैं कष्ट में हूँ
तुम्हारे साथ न होने पर
मुझे ठोकरें पड़ रही हैं
हाथ से सीधे पैरों में आ गिरी हूँ
मुझे अब
ज्ञात हो रहा है
तुम्हारे साथ का महत्व
आ जाओ
चलो
फिर से हम खा लेते है
कसमें साथ मरने-जीने की
आ जाओ
मेरी वेदना पर
कुछ तो तरस खाओ
आ जाओ
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मेरी वेदना पर
कुछ तो तरस खाओ
आ जाओ
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