क्यों भला प्रतिशोध की ज्वाला लिए तुम जी रहे हो
क्यों दिखाकर द्वेष-भेष घूँट विष का पी रहे हो
नम्रता का भाव लेकर जय विजय नेतृत्व देखो
क्षम्य कृत्यों का लिए क्यों बोझ तुम अब जी रहे हो
भूल जाओ भूत की भाषा विषय सब सांझ आई
उम्र कोई भी भले हो सुबह सबकी बार आई
घास झुककर चीड़ के सम्मुख खड़ी लहलहा रही है
और धरती पर पड़ी लकड़ी व्यथा पर मुस्कराई
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