Tuesday, March 24, 2020

कविता और कहानी - 1

आजकल कविता भुलाकर मैं कहानी लिख रहा हूँ
भूलकर बचपन बुढ़ापा मैं जवानी लिख रहा हूँ
शब्द लय से हट गए हैं गद्यमय लेखन हुआ है
कुछ नहीं संकोच सीधी सी रवानी लिख रहा हूँ

क्यों विरोधाभास अब अभिव्यक्त हो बस हंस रहा है
क्यों भला मस्तिष्क मेरा नई विधा में फंस रहा है
किस विनय को कर्ण मैं दूँ कारकों को साथ मानूं
ज्ञान से मेरे परे हो ध्यान चपलक धंस रहा है

कलम रुककर कह रही है क्यों नहीं विश्राम करते
कुल स्याही जम गई है उम्र भर अविराम बहते
पृष्ठ पीड़ा से व्यथित हो लड़ रहे हैं उंगलियों से
प्रेरणा की घनिष्ठता का पृष्ठ ही परिणाम सहते

क्यों अधूरी छोड़कर कविता, विधा का रूप बदला
क्यों अधूरा साथ देकर यों हवा का रुख बदला
कल्पना के स्वर स्वतः ही स्वप्न बन कर घूमते हैं
क्यों भला संदर्भ वंचित साथ संचित रूप बदला

कुल विषय विस्तार वर्णन बंधनों से मुक्त होकर
सृजन शक्ति सुगम आशय सुलभता से युक्त होकर
जंगलों में झाड़ियों से झूझती है कलम मेरी
उस सुबह की है प्रतिक्षा अड़चनों से मुक्त होकर

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर।
    घर मे ही रहिए, स्वस्थ रहें।
    कोरोना से बचें।
    भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. धन्यवाद मयंक जी
      नववर्ष की बधाई हेतु धन्यवाद, आपको भी शुभकामनाएं

      घर पर हूँ घर पर रहूँगा
      मुझसे दूर रहो करोना से कहूँगा

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  2. अति सुंदर,😊भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं.....

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    1. धन्यवाद॥ आपको भी नववर्ष की शुभकामनाएं

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