Thursday, November 4, 2010

कांग्लुंग मे दिवाली

कांग्लुंग कॉलेज मे, आई दिवाली
प्रथम बार हमको लगा, रंग, रूप, जाली
रंग, रूप, जाली, याद आई थी घर की
ऐसा लगा, जैसे हो, यही मजबूरी हर की

हर सुख, हर स्थान पर, नहीं कभी संभव
स्वर्ग बने धरती, अगर हो जाये संभव
हो जाये संभव, प्रकाश घर-घर मे जागे
दिवाली सन्देश मे, यही कहे, भागे

भारतीय आकाश में, शोर रहे इस रात
शांति कर रही शोर है, कान्ग्लुंग की बात
कान्ग्लुंग की बात, रात मे होती वाह-वाह, दाद
खील, बताशे, खिलौने, हमे लगे अपवाद

सुबह हुई देखा सुना बीती दिवाली,
प्रथम वार हमको लगा रंग रूप जाली...

(27 Sept 1994 - Exam duty, room no 26, Sherubtse College, Kanglung, Bhutan)

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