Wednesday, December 7, 2011

सांस और मैं

1.
आज मैं सांस ले सका हूँ दोस्त
जिंदगी सांस मे नहीं होती
सांस लेकर नहीं मैं जिन्दा हूँ
काश ये सांस ही नहीं होती.

(1st Dec 2011, 6 pm, shillong - L 57)


2.
मुझको सांसें गिना रही थी वो
जो घडी देख कर गुजरती थी
मेरा सारा गणित अधूरा था
जिन्दगी सांस ही से चलती थी.

3.
सांस चलती है तो सताती है
सांस रूकती है तो सताती है
सांस आवागमन का माध्यम है
जिंदगी को बहुत बताती है.

(2nd Dec 2012, 8 PM, Shillong)

4.
सांस को छोड़ कर चलूँगा मैं
जहाँ तक दोस्त लेके जायेंगे
मेरा विश्वास मेरे अपने हैं
सभी सम्बन्ध हम निभाएंगे

5.
सांस का टूटना अपेक्षित है
मगर हर सांस को जिऊंगा मैं
मुझे झुकने में दर्द क्यों होगा 
अगर संभव जहर पिऊंगा मैं

6.
कष्ट साँसों से अब नहीं होता
सांस का साथ मैं निभाऊंगा
जब कभी सांस साथ छोड़ेगी 
मैं उसके साथ मुस्कराऊंगा 

7.
सांस की उम्र ढल रही है अब
मेरे चलने पे मुस्कराती है
मैं चल रहा हूँ यार रुकरुक कर
मेरे कदमो पे सर झुकाती है 

8.
सांस लगता है प्यार करती है
मैं लिख रहा हूं सांस चलती है
मैं भरी भीड़ मे अकेला हूँ
मगर ये साथ साथ चलती है

9.
चलो अब सांस को यहीं छोडें 
उसको अविराम काम करने दें
मेरे सपनों को नींद आती है
स्वप्न साँसों को बात करने दें 

10.
साँस लडती है साथ मत छोड़ो
तुम लिखो मैं तुम्हारी संज्ञा हूँ
तुम जियो मैं तुम्हे संवारूंगी
मैं विशेषण सधी प्रतिज्ञा हूँ

11.
तुम्हारा सूक्ष्मतम रहे जीवित 
तुम्हारी कल्पना को पर दूँगी
तुम्हारे शब्द कर्ण कोमल हों
तुम्हे हर पल नवीन ज्वर दूँगी

12.
तुम मुझे छोड़ कभी सकते नहीं
मैं तुम्हे लड़ के जीत लुंगी विजय
न मेरी जीत है न तेरी हार
मैं तेरे साथ ही रहूंगी विजय

(11 pm New delhi Railway Stn, platform 9, 
waiting for AC Express to Lucknow, 3 dec 2011)

13.
सांस मुझको सुला रही है अब
मेरे माथे को थपथपाती है
मुझे अब अंधकार भाता है
मेरी माँ मुझको याद आती है

14.
चाहता हूँ कि सांस को ओडून
मगर तकिये को वो सजाती है
मेरी चादर से पैर लम्बे हैं
पैर फैलें न वो जताती है

15.
उसका दर्शन बड़ा निराला है
मेरे अस्तित्व को बताता है
मेरे दर्शन को प्रश्न करता है
सभी उत्तर स्वयं सजाता है  

(12 midnight, in Train, 3 dec 2011)

16.
आँख है बंद सांस चलती है
उसके करतब सभी सताते हैं
सोच लूँ फिर भी भूल सकता नहीं
उसके सपने मुझे जगाते हैं

17.
उसका स्पर्ष याद आता है
उसका रंग-रूप भी लुभाता है 
वो मेरे साथ है जागि हुई
बंद आँखों को चमचमाता है

18.
मेरा परिचय हुआ है अब जाकर 
उसका वंदन ह्रदय से करता हूँ
मेरा जीवन उसे समर्पित है
उसके जीवन से प्यार करता हूँ 

19.
मेरे सम्पर्क-सूत्र साझे है
उसके होने से ही मै होता हूँ
मेरे होने से ही वो होती है
अपनी माला को मैं पिरोता हूँ

20.
मेरी कविता उसी के वर्णन से
कम से कम कुछ तो उसको पाया जान
उसका कृतज्ञ हूँ रहूँगा सदा
मेरा हर रोम उसका अंतर्ज्ञान

21.
अंत करता हूँ मांगता हूँ क्षमा
बहुत कुछ कह दिया अधिकारों से'
फिर मिलूँगा किसी बहाने से
विजय होगी इन्ही विचारों से.


(5:30 pm, Lucknow Delhi Shatabdi, 
4 dec 2011)

6 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

    कल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, मसीहा बनने का संस्‍कार लिए ....

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  2. bahut behtreen prastuti har laain me ek soch ek anubhav chupa hai saans hi hai jo hardam saath nibhati hai jab jati hain to saath lekar jaati hain.

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  3. साँस दर साँस पढते रहे साँसों का फलसफा .. बहुत खूब

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  4. दो एहसास हैं जो बंध गए हैं इन साँसों से...
    एक साँसों का आना और दूसरा उन्हीं का जाना......

    बहुत सुन्दर.....

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  5. ye sanse yun hi chalti rahe ......wahi bahut hai

    khubsurat parstuti

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  6. बहत सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई

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