Friday, June 29, 2012

सोंचता हूँ

आदमी से आदमी, क्यों  भागता है दूर,
जानता है भांजता है, फिर वही भरपूर,
सोंचता हूँ खोल दूं, मैं चक्षु चलकर स्वयं
जानकर होता नहीं संतोष पथ पर चूर।

10 May 2012, Shillong 

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