Thursday, December 13, 2012

जंगल में मनुष्य

देखे
कुछ मनुष्य
जानवरों के शहर में

मदमस्त हाथी
भौंकते कुत्ते  
दहाड़ते शेर
गुर्राते भालू

गर्भवती बकरी
रंग बदलते गिरगिट
रंभाती गाय
हिनहिनाते घोड़े
मिमियाती बिल्लियाँ

टरटराते मेंढक
रेंगते कछुए
फुफकारते सांप

भिनभिनाती मधुमक्खियाँ
कावं-कावं करते कौए
गुटरगूं करते कबूतर
चिंचिहाती चिड़ियाँ

'जब आती है मौत
गीदड़ की
तो भागता है
शहर की ओर'

निहारते गीदड़
भीगी बिल्ली
खूनी शेर
एक सन्नाटा
शांति का शोर

देखे
कुछ मनुष्य
जानवरों के शहर में
इस गाँव के मध्य
मेघों के घर में
या
इस शहरनुमा गावं में

जंगल में
क्यों घुस आयें हैं
कुछ मनुष्य
जानवरों के भेष में।


(18 Oct  2011 सुबह, जब मैं व मेरी पत्नी  टहल रहे थे, विश्वविद्यालय के एक  वरिष्ठ अध्यापक ने मुझसे हंसते हुए पूंछा 'आपने किसी मनुष्य को देखा टहलते हुए', उनका  इशारा उनके अन्य साथियों से था जिन्हें वो खोज रहे थे।  उनका यह वाक्य इस कविता का प्रेरणा-स्रोत बना। धन्यवाद प्रोफेसर शुक्ला)

2 comments:

  1. कंक्रीट के जंगल में हर दिल भी पत्थर सा हो गया है

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  2. बहुत ही सुंदर। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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