मै वैसा नहीं हूँ
जैसा मेरी माँ सोचती है
जैसा मेरी बेटी सोचती है
माँ मुझे समझती है
एक पुत्र
वही पुत्र
जिसको उसने पाला-पोशा
मेरी पत्नी
मुझे मात्र एक पति
समझती है
मेरी बेटी
के लिए
मैं एक पिता के सिवा
कुछ नहीं
मैं स्वयं को
एक पुत्र से अधिक
एक पति से अधिक
एक पिता सोचता हूँ
अवश्य मैं
एक पुत्र हूँ
पिता हूँ
पति हूँ
मैं बना रहना चाहता हूँ
एक इंसान
एक मित्र
एक साथी
बस और कुछ नहीं
पुत्र, पिता व पति भी नहीं।
जैसा मेरी माँ सोचती है
जैसा मेरी बेटी सोचती है
माँ मुझे समझती है
एक पुत्र
वही पुत्र
जिसको उसने पाला-पोशा
मेरी पत्नी
मुझे मात्र एक पति
समझती है
मेरी बेटी
के लिए
मैं एक पिता के सिवा
कुछ नहीं
मैं स्वयं को
एक पुत्र से अधिक
एक पति से अधिक
एक पिता सोचता हूँ
अवश्य मैं
एक पुत्र हूँ
पिता हूँ
पति हूँ
मैं बना रहना चाहता हूँ
एक इंसान
एक मित्र
एक साथी
बस और कुछ नहीं
पुत्र, पिता व पति भी नहीं।
एक पुरुष की सोच को पढ़ कर, समझ कर अच्छा लगा| काश हर पुरुष सही ढंग से सोच कर हर किसी का सच्चा मित्र बन सके पर ऐसा होता नहीं है |
ReplyDeletedhanyavaad... anju ji....aapki pratikriya achchi lagi... parantu main sochta hoon ki mitrata or purushatwa ka gender sey koi samhandh nahin hai.... vyakti ke sambandh hi uski poonji hote hain....
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteइक अच्छा इंसान होना ज़रूरी है.....ये सारे रोल अपने आप अच्छे से निभ जाते हैं....!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
dhanyavaad... punam ji.... aapki pratikriya se shabdshah sehmet hoon...
Deleteशायद ऐसा बन पाना आसान नहीं होगा ... इस स्वार्थ भरी दुनिया में ...
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