Friday, April 5, 2013

मुस्कराना


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मुस्कराना बहुत ज़रूरी है 
वरना सब कुछ उदास ही तो है
दूर खुद से कभी न जाओ तुम 
ज़िंदगी नाम आस ही तो है
वक्त रहता कहाँ है हरदम एक 
उठ के गिरना है गिरके उठना है
सोचता हूँ मैं बस इतना अब 
नदी के नाम प्यास भी तो है 
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4 april 2013/ 8 30 am

(शैली अग्रवाल की फ़ेस बूक प्रविष्टि 
'तनहा... खुद से दूर.. सोच के मुस्कुरा देती हूँ..
कि अब उदासी का साथ सही.. 
उम्र भर तो रहेगा..!!
के उत्तर मे)
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