Wednesday, June 19, 2013

प्रणाम

प्रोफेसर माधवेन्द्र प्रसाद पाण्डेय द्वारा 12 जून 2013 को फेसबुक पर निम्न पंक्तियाँ लिखी गयीं .... 

प्रणाम,
कभी प्रणाम किया है
अनन्त आकाश को,
चमकते सूर्य को, 
छलकते झरने को, 
मृदु, कोमल हवा के झोंकों को
कभी सचमुच, झुक कर प्रणाम किया है ?

हाथ जोड़ कब खड़े हो गए हो तुम
किसी जंगल, वन, घाटी या 
मुस्कुराते वृक्ष के सामने ?
क्षुद्रता क्या त्यागी है कभी इतनी
कि कृतज्ञता-भाव से
आपाद नमन किया हो
उस हवा को जिसने तुम्हें सांसे दीं ?

इन पंक्तियों के उत्तर में मैंने लिखा ...

और 
क्या कभी 
महसूस किया है 
दर्द 
उन ओस की बूंदों का 
जिन्हे पता नहीं है 
तुम्हारा नाम
तुम अकस्मात ही 
व्यस्त नहीं हो गए 
अपनी पीड़ा बांटने 
इस आशा से परे
कि इन आँख से 
गिरे मोतियों 
और 
ओस की बूंदों मे 
कोई सामंजस्य हो 

प्रणाम 
हे सूर्य
तुझे प्रणाम
प्रणाम 
हे आकाश
हे चट्टान
हे वायु
हे मेघ 
प्रणाम 
हे पुष्प 
हे किरण 
हे बूंद
हे अश्रु
प्रणाम 
हे प्रकृति 
प्रणाम....

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