Wednesday, June 12, 2013

अनुरक्ति

77

यह मौसम ले गया 
घर से उड़ाकर हास्य के स्वर
कि जैसे बैठ मैं 
शमशान मे देखूँ मचलते पर 
अजब सी बात है 
पत्थर मुझे पानी पिलाते है 
बस इतना सोचता हूँ 
क्यों रही अनुरक्ति जीवन भर
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76 - अलंकार
75 - कारक 
74 - मोती 
73 - क्यों 
72 - रिश्ते 2 
71 - मुस्कराना 
70 - सवेरा 
68, 69 - होली 2013
67 - रिश्ते 
66 - आस 
65 - गन्तव्य
64 - मैं इतना सोच सकता हूँ 15 
63 - मैं इतना सोच सकता हूँ 14 
61, 62 - मैं इतना सोच सकता हूँ 13 
60 - मैं इतना सोच सकता हूँ 12    
57 से 59 तक  - मैं इतना सोच सकता हूँ 11
54 से 56 तक  - माँ तुझे सलाम
51 से 53 तक  - मैं इतना सोच सकता हूँ 10
48 से 50 तक - मैं इतना सोच सकता हूँ 9 
47 - राजनीति 
44 से 46 तक - मैं इतना सोच सकता हूँ 8 
38 से 43 तक - मैं इतना सोच सकता हूँ 7 
28 से 37 तक - मैं इतना सोच सकता हूँ 6 
25 से 27 तक  - मैं इतना सोच सकता हूँ 5 
24 - नींद 
23 - विविधता 
20 से 22 तक - मैं इतना सोच सकता हूँ 4 
19 - विवाह 
18 - संतुष्टि 
17 - आवाज 
12 से 16 तक - मैं इतना सोच सकता हूँ 3 
7 से 11 तक - मैं इतना सोच सकता हूँ 2
1 से 6 तक - मैं इतना सोच सकता हूँ  1 

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