Monday, February 10, 2014

बंद

बंद कर दिए जाते हैं
कल-कारखाने
कार्यालय
कार्य करने के सभी
स्थान व संस्थान
अवरुद्ध किये जाते हैं
सब मार्ग
बंद कर दी जाती हैं
सड़के व वाहन
रोक दी जाती है
गति

बंद नहीं होती है
भूख
फिर क्यों
बंद कर दिए जाते हैं
भूख मिटाने के संसाधन

हाथ
कुछ करने के लिए.
पैर
कुछ दूर चलने के लिए
आँखे
देखने के लिए
कान, नाक, जिव्याह
सभी बने हैं
प्राकृतिक रूप से
कुछ न कुछ करने के लिए
आखिर
क्यों बंद कर दिया जाता है
इनका प्रयोग

शरीर के
इन सभी अंगो को
निर्देशित करता है
मस्तिष्ट
कार्य करने के लिए

नहीं बंद होती है
पेट की भूख
फिर भी
बंद कर दिए जाते है
भूख मिटाने के
साधन व संसाधन

संभवतः
काम करना बंद कर देता है
उनका मस्तिष्ट
जो अनभिज्ञ हैं
इस सत्य से
कि
कुछ भी हो
नहीं बंद होती है
पेट की भूख

------------
21 Dec 2013 in train 12435...gty bly rajdhani...8 30 am just crossed bongaigaon....
(२० दिसम्बर को असम बंद था, और हम लोग गुवाहाटी जा रहे थे शिलांग से.... पिछले कुछ महीनो से मेघालय में बंद काफी आम हो गया है, इनर लाइन परमिट को लेकर... इस कविता का जन्म इन बन्दों के कारण प्रभावित दिहाड़ी कमाने वाले मजदूरों की व्यथा से हुआ)

No comments:

Post a Comment