Friday, August 1, 2014

मेघालय में बरसात

क्यों हो गई हो तुम
इतनी निर्दयी
तुम्हारे स्पर्श को यह धरती
व 
उसपर रहनेवाले
तरस रहे हैं
सोचो क्या होगा
तुमपर आश्रित जीवों का
लगता है
तुम्हारी संवेदना शक्ति
समाप्ति की ओर अग्रसर है
तुम्हारा शुष्क व्यवहार
सभी को
शुष्क करता जा रहा है
धरती का ताप चड़ाव पर है
आकाश की गड़गडाहट
कुछ आस बंधाती है
परन्तु एक तुम हो कि
अपने प्रण पर अडिग दीखती हो
संभवतः तुम
तुमपर आश्रित जीवों की
परीक्षा ले रही हो
उनके संयम की परीक्षा
भलीभांति यह जानते हुए कि
कोई भी
तुमपर निर्भरता से परे नहीं है

तुम्हारा अडिग व्यवहार
मुझे विचलित कर रहा है

यह वह नगरी है जहाँ
तुम्हारा वास होता था
तुमसे इस नगरी की पहचान थी
इस नगरी में तुम्हारी जान थी
तुम इस नगरी की शान थी

मेरी स्मरण शक्ति
मुझे तुम्हारी
ममताभरी कहानियां याद करने को
कह रही है
पूर्वजों द्वारा तुम्हारा मार्मिक वर्णन
तुम्हारी करुणामयी आँखें
सब कुछ
मेरी स्मृति को चुनौती दे रहा है
तुम क्यों भूल गयी हो
इस नगरी की राह
इस नगर से क्यों तुमको
नहीं रहा प्यार
या
तुम्हारा यह रूप
किसी प्रतिशोध की
अभिव्यक्ति है

इस अप्राकृतिक समय में
तुम भी अप्राकृतिक हो जाओगी
मुझे ज्ञात नहीं था

मेरी सारी प्रार्थनाएं
व्यर्थ लगती हैं मुझे
तुम टस से मस
होने को तैयार नहीं दीखती हो

सोचो एक क्षण
हमारे पारस्परिक संबंधों के बारे में
हमारी पारस्परिक निर्भरता के सन्दर्भ में
मुझे कोई विकल्प नहीं सूझ रहा है अब

हे इंद्र देव!
कुछ कृपा करो

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