मायके में कभी बचपन
बिखरा नहीं होता
संगठित होता है
मां उसको
अपने हृृृदय के
बिखरा नहीं होता
संगठित होता है
मां उसको
अपने हृृृदय के
लॉकर में
बड़े पीतल के ताले में
बंद कर के रखती है
जिसकी चाबी
वो बहुत संभाल कर रखती है
कभी किसी को नहीं देती है
यह ताला
उतना ही मजबूत होता है
जितना उसका इरादा
उसका संकल्प
परिवार को एक कड़ी में
बांधे रखने का
और शनै शनै
जब नाती - नातिन,
पोते - पोतियां होते हैं
उनके सामने
धीरे धीरे ताले खुलते हैं
मां चाबी घुमाती है
सारा संगठित बचपन
मां की आंखों से
बच्चों की संवेदना तक
संप्रेषित होता है
धुलता है (मां की आंखों से)
खुलता है
बचपन मायके में
बिखरा हुआ नहीं
संगठित होता है
बड़े पीतल के ताले में
बंद कर के रखती है
जिसकी चाबी
वो बहुत संभाल कर रखती है
कभी किसी को नहीं देती है
यह ताला
उतना ही मजबूत होता है
जितना उसका इरादा
उसका संकल्प
परिवार को एक कड़ी में
बांधे रखने का
और शनै शनै
जब नाती - नातिन,
पोते - पोतियां होते हैं
उनके सामने
धीरे धीरे ताले खुलते हैं
मां चाबी घुमाती है
सारा संगठित बचपन
मां की आंखों से
बच्चों की संवेदना तक
संप्रेषित होता है
धुलता है (मां की आंखों से)
खुलता है
बचपन मायके में
बिखरा हुआ नहीं
संगठित होता है
अच्छी कविता
ReplyDeleteबहुत उम्दा साहेब।
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