Tuesday, November 22, 2011

घर

जिनके घर हैं
घर में नहीं रहते
जिनके नहीं हैं घर
तलाशते रहते हैं
अपना घर.

(22 Nov 2011...1040 AM, Shillong)

5 comments:

  1. बेहद गंभीर कविता... वाकई घर की तलाश में जिंदगी निकल जाती है... सुन्दर...

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  2. jo hai uski ahmiyat nahin... jo nahin hai, uski talash hai !

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  3. जिनके पास अन्न हैं
    उन्हे भूख नहीं हैं
    जिनके पास भूख हैं!
    तलाशते रहते हैं
    कुछ तो मिल जाए खाने को ...

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