आज सुबह
विश्वविद्यालय के
विश्वविद्यालय के
प्रथम व तृतीय द्वार के मध्य
भिन्न भिन्न दूरियों पर
देखे पड़े हुए
रैपर
चिप्स-नमकीन के पैकेटों के
देखीं पड़ी हुई
शराब की खाली बोतलें
देखे पड़े हुए
प्लास्टिक के खाली
लुदके हुए गिलास
कागज की प्लेटें
(प्रयोग की हुई)
देखे पड़े हुए
रैपर
सिगरेट के पैकिटों के
माचिस की डिब्बियों के
भिन्न भिन्न दूरियों पर
देखे पड़े हुए
रैपर
चिप्स-नमकीन के पैकेटों के
देखीं पड़ी हुई
शराब की खाली बोतलें
देखे पड़े हुए
प्लास्टिक के खाली
लुदके हुए गिलास
कागज की प्लेटें
(प्रयोग की हुई)
देखे पड़े हुए
रैपर
सिगरेट के पैकिटों के
माचिस की डिब्बियों के
यहाँ
अवश्य देखा होगा
चिंगारियों ने
स्वयं को
आग मे बदलते
और आग को
राख में
यहाँ
अवश्य हुए लगते हैं
जीत के जश्न
या
मातम
चलते चलते
या
रूककर सड़क के किनारे
बैठकर
इन मुंडेरों ने
अवश्य सहारा दिया होगा
लडखडाते कदमो को
प्रथम व तृतीय द्वार के मध्य
क्या यहीं
की थी
पोरस पर
चढाई
सिकंदर ने
हार के बाद
जब पोरस से पूछा था
सिकंदर ने
'क्या सुलूक किया जाये
आपके साथ'
'वही जो एक राजा को
करना चाहिए
राजा के साथ'
क्या यहीं से
सिकंदर की सेनाएं
वापस कर दी गयी होंगी.
प्रथम व तृतीय द्वार के मध्य
सभी निर्णय लिए गए होंगे
ये सब
पड़े हुए रैपर
अपनी व्यथा कहते हैं
कविता-कहानी
को जन्म देते हैं
ज्यादा कुछ नहीं
जानता हूँ मैं
परन्तु
इतना अवश्य
ज्ञात है मुझे
यहाँ बहुतों की
हुई है
मौत.
(और बहुतों के रैपर
यहाँ अभी भी पडे हुए हैं).
(11.10.11, 6:20 AM, Shillong, NEHU Campus - after the morning walk)
(विश्वविद्यालय मे पिछले लगभग दो वर्षों से कुछ मुद्दों को लेकर गतिरोध की स्थिति बनी हुई थी, विश्वविद्यालय का प्रशासनिक कार्यालय प्रथम व तृतीय द्वार के मध्य है, जहाँ सभी महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं, कर्मचारियों व अध्यापकों ने इसी सड़क पर कई बार अनशन व रैली निकाली. अब वो सब गतिरोध लगभग समाप्त सा दीखता है, परन्तु मुझे उन दिनों का स्मरण प्रायः होता है सो इस कविता का जन्म उसी अनुभूति की अभिव्यक्ति है)
बहुत सुन्दर कविता... उद्वेलित करती सी....
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