61
मैं सुनना चाहता हूँ गीत मंगल और सुमंगल के
है जीवित हो चुकी आशा बृहद विस्तार जंगल के
मेरे विश्वास में कोई कमी होगी तो क्यों होगी
मैं इतना सोच सकता हूँ सधे संवाद जंगल के
62
मैं पड़ना चाहता हूँ पुस्तकें स्नेह वंदन की
सरल हो व्याकरण उपयोग तम गंध चंदन की
मगर क्यों द्वेष भरती पुस्तकें बाज़ार होती हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ लगी क्यों आस बस धन की
-------------------------------------------
(1-6 CLICK HERE)
(7-11 CLICK HERE)
(12-16 CLICK HERE)
(17 CLICK HERE)
(18 CLICK HERE)
(19 CLICK HERE)
(20-22 CLICK HERE)
(23 CLICK HERE)
(24 CLICK HERE)
(25-27 CLICK HERE)
(28-37 CLICK HERE)
(38-43 CLICK HERE)
(44-46 - CLICK HERE)
(47 - CLICK HERE)
(48-50 - CLICK HERE)
(51-53 - CLICK HERE)
(54-56 - CLICK HERE)
(57-59 - CLICK HERE)
(60 - CLICK HERE)
No comments:
Post a Comment