57
मुझे
नवग्रह बताते हैं जो कांटो को सजाते हैं
मगर
हम हाथ की रेखायेँ सुकर्मो से जगाते हैं
बहुत
से कष्ट सहकर हम कठिन प्रयास करते हैं
मैं
इतना सोच सकता हूँ दुकर्मो से बचाते हैं
58
मेरा विश्वास संशित है मेरा अभ्यास प्रेरित है
मगर क्यों लिपि नियंत्रित हो नहीं आभास किंचित है
मेरा चिंतन तेरी द्रष्टि नहीं संयोग लगते हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ नहीं प्रयास वंचित है
59
मैं रिश्ते ढूँढता हूँ शहर में हर दम मशीनों से
सजाकर जो दिखाती है नई दुनिया बगीचों से
मुझे कल-कारख़ाने सब पुराने ही सुहाते हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ यही अनुभव गलीचों से
-------------------------------------------------------------
(1-6 CLICK HERE)(7-11 CLICK HERE)(12-16 CLICK HERE)(17 CLICK HERE)(18 CLICK HERE)(19 CLICK HERE)(20-22 CLICK HERE)(23 CLICK HERE)(24 CLICK HERE)(25-27 CLICK HERE)(28-37 CLICK HERE)(38-43 CLICK HERE)(44-46 - CLICK HERE)(47 - CLICK HERE)(48-50 - CLICK HERE)(51-53 - CLICK HERE)(54-56 - CLICK HERE - माँ तुझे सलाम)
No comments:
Post a Comment