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मैं बदलना चाहता हूँ क्यों सरल में हर जटिल को
और देना चाहता हूँ इक दिशा बहते सलिल को
प्रश्न मुझको भेद करते सोच पर्वत पात ढलते
सोच सकता हूँ मैं इतना श्वेत होना उस कपिल को
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