Wednesday, May 19, 2010

मेरी दाड़ी

उँगलियों का स्पर्श,
मेरे गालों पर,
मेरे बालों पर
मेरी ... ऊबड़-खाबड़ दाड़ी पर,
कल्पना, स्वप्न, अभिलाषा
या उड़ान,
भींचना होठों का,
या फिर
उंगली के नाखूनों का संघर्ष
हाथ की - कभी स्वयं से, कभी दातों से,
गालों को टिकाना,
सम्पूर्ण हथेली पर,
या फिर
हथेलियों का,
उँगलियों को भींचकर
दोनों हाथों की
सर को सहारा देना,
किसी से बात करते
एक टकी लगा कर देखना
कहीं और
कुछ सूचक मात्र हैं
ये किर्याकलाप
कौन, कब, किससे, किसको, क्यों,
कैसे, कहाँ,
दर्शाते हैं
पथ उड़ान का
साकार करने के लिए
कल्पनाएँ
एक सम्पूर्ण सामंजस्य...
(२६ अगस्त १९९२, १० बजे सुबह, हर्मंन माइनर स्कूल, भीमताल, नैनीताल, उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल)

1 comment:

  1. अस्मिता की खोज में
    मैंने निरंतर रूप बदले
    देख कर खुद को मुकुर में
    प्यास मेरी मिट न पाई
    भीड़ में नजरें किसी की
    काश, मुझपर रुक न पाई
    हर डगर पर, हर गली में,
    हर मोहल्ले में गया हूँ
    पर किसी ने कुछ न पूछा
    मूक प्रतिध्वनि लौट आयी
    इंगितों के अर्थ क्या हैं ?
    जानने को प्राण मचले
    अस्मिता की खोज में
    मैंने निरंतर रूप बदले

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