उत्कृष्ट प्रस्तुति भाई साहब .
दूरियाँ बढ रहीं हैं नदियों सी सबका गन्तव्य एक होकर भीबहुत सही कहा आपनेसादर!
मैं बदलना चाहता हूँ क्यों सरल में हर जटिल कोऔर देना चाहता हूँ इक दिशा बहते सलिल कोप्रश्न मुझको भेद करते सोच पर्वत पात ढलतेसोच सकता हूँ मैं इतना श्वेत होना उस कपिल कोकोई लम्बी काव्य रचना चल रही है ....?
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति भाई साहब .
दूरियाँ बढ रहीं हैं नदियों सी सबका गन्तव्य एक होकर भी
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने
सादर!
ReplyDeleteमैं बदलना चाहता हूँ क्यों सरल में हर जटिल को
और देना चाहता हूँ इक दिशा बहते सलिल को
प्रश्न मुझको भेद करते सोच पर्वत पात ढलते
सोच सकता हूँ मैं इतना श्वेत होना उस कपिल को
कोई लम्बी काव्य रचना चल रही है ....?