खड़े होकर
जब मैंने देखा
मुझे दिखाई दिए
कुछ ऊपर
कुछ नीचे
मेरा मध्य
उनके मध्य से भिन्न था
अच्छाई और बुराई
पाप और पुण्य
दुःख और सुख
क्लेश और शांति
इनका मध्य क्या है
कुर्सी बनाने वाला बढई
कुर्सी पर बैठने वाला शासक
पानी पिलाने वाला पियाऊ
सबको पानी पिलाने वाला शासक
मजदूर और मालिक
धनी और गरीब
किसान और उद्धमी
इनका मध्य क्या है
मुझे मात्र ज्ञात है
मध्य
सिर और पैर का
जिसके लिए
हम सब जी रहे हैं
युद्ध कर रहे हैं
पाल रहें हैं
आशाएं
अभिलाषाएं
काश
यह मध्य ना होता
मेरा माध्यम भी
ना होता
ना होता
कोई युद्ध
संघर्ष
ना होती
कोई अभिलाषा.
(VK Shrotryia, 9:40 AM, 28 Sept 2011, Shillong)
मध्य पर उत्कृष्ट चिंतन. कविता अच्छी बनी है. मध्य पर उत्कृष्ट चिंतन. कविता अच्छी बनी है.
ReplyDeleteexcellent
ReplyDeleteसमस्या का मध्य में होना निशानी है उसके चरम पर होने की
ReplyDeleteसमस्या का चरम पर होना माध्यम है उसके खात्में के करीब होने की