गाँठ या यों कहें ग्रंथि
रिश्तों के जीवन में
बाधा भी बनती हैं
और स्वावलोकन का कारण भी,
बेहतर इंसान बनने की ओर
प्रेरित भी करती हैं,
और अहंकार में लिप्त रहने की
ओर खींचती भी हैं।
गाँठे हमेशा अपने रूप को
बदलती हैं,
अनुभव व समय के साथ,
सकारात्मक सोच
व रिश्तों की प्रगाढ़तावश।
परंतु यदि
अपने दम्भ में ग्रसित मानसिकता
व्यक्ति पर हावी होती जाती है
तो यही ग्रंथि
और कठोर हो जाती है,
और शरीर के राख होने तक
उसकी कठोरता जस की तस रहती है।
गाँठ को सरल करने
व उसके स्वरूप को कठोरता से
कोमलता के रास्ते होते हुए
सहज भाव से खोलने की प्रक्रिया में
किसी न किसी को झुकना होता है,
रिश्तों को नैसर्गिक
एवं सुचारु रूप से
जीवित रखने की ख़ातिर।
मेरी कविताएं
Wednesday, April 24, 2024
रिश्ते 29
रिश्तों की ऊन
बहुत गरमाहट देती है.
रिश्तों की ऊन से
हाथ द्वारा बने स्वेटर,
किसी भी सर्दी में
गरमी का एहसास देते हैं,
स्वेटर बनाने वाले
और
पहनने वाले के रिश्ते
ऊन से बंधे रहते है
एक सिरे से दूसरे सिरे तक.
किसी भी रंग, क़िस्म
और क़ीमत पर,
रिश्तों का रंग
हावी होता है.
ऐसे स्वेटर पीढ़ी दर पीढ़ी
पहने जाते है.
रिश्तों की ऊन
बांधे रहती है
पीढ़ियों को.
कई बार
उधेड़े भी जाते हैं
ऐसे स्वेटर
और नये रूप में,
नये फैशन के,
नये आकार और प्रकार
में बदल दिये जाते हैं.
रिश्तों की ऊन
बहुत गरमाहट देती है.
आजकल
ऐसे रिश्ते, ऐसे स्वेटर
कम ही दीखते हैं.
हाथ द्वारा बने स्वेटर,
किसी भी सर्दी में
गरमी का एहसास देते हैं,
स्वेटर बनाने वाले
और
पहनने वाले के रिश्ते
ऊन से बंधे रहते है
एक सिरे से दूसरे सिरे तक.
किसी भी रंग, क़िस्म
और क़ीमत पर,
रिश्तों का रंग
हावी होता है.
ऐसे स्वेटर पीढ़ी दर पीढ़ी
पहने जाते है.
रिश्तों की ऊन
बांधे रहती है
पीढ़ियों को.
कई बार
उधेड़े भी जाते हैं
ऐसे स्वेटर
और नये रूप में,
नये फैशन के,
नये आकार और प्रकार
में बदल दिये जाते हैं.
रिश्तों की ऊन
बहुत गरमाहट देती है.
आजकल
ऐसे रिश्ते, ऐसे स्वेटर
कम ही दीखते हैं.
Tuesday, November 14, 2023
रिश्ते - 28
रिश्ते पानी की तरह
साफ़ होते हैं
तो नदी बन समंदर हो जाते हैं.
रिश्ते बर्फ़ की तरह
जम भी जाते हैं
और हिम सागर भाँति
पिघलते भी हैं.
रिश्ते मजबूत होना
अच्छा होता है
परंतु चिन्ता का विषय होता है
रिश्तों का पत्थर हो जाना.
रिश्तों में लोच ज़रूरी होता है
और लोच के सीमेंट से बने रिश्ते
मजबूत होकर भी पत्थर नहीं होते.
रिश्तों को मिट्टी होने से
बचाना भी होता है
और बिखरने से
सम्हालना भी होता है.
रोड़ी और रोड़े मिलकर
रिश्ते में मज़बूती लाते हैं.
रिश्ते हाथ से रेत की तरह
सरक भी जाते हैं
और ईंट की तरह खड़े भी रहते हैं.
ईंट का जवाब पत्थर से देने से
रिश्ते टूट जाते हैं.
ईंट से बने मकानों को
रिश्ते ही घर बनाते हैं.
ऐसा घर जहां
सुख-दुःख साथ-साथ रहते हैं
और
जीवन को आनंदमय बनाते हैं.
तो नदी बन समंदर हो जाते हैं.
रिश्ते बर्फ़ की तरह
जम भी जाते हैं
और हिम सागर भाँति
पिघलते भी हैं.
रिश्ते मजबूत होना
अच्छा होता है
परंतु चिन्ता का विषय होता है
रिश्तों का पत्थर हो जाना.
रिश्तों में लोच ज़रूरी होता है
और लोच के सीमेंट से बने रिश्ते
मजबूत होकर भी पत्थर नहीं होते.
रिश्तों को मिट्टी होने से
बचाना भी होता है
और बिखरने से
सम्हालना भी होता है.
रोड़ी और रोड़े मिलकर
रिश्ते में मज़बूती लाते हैं.
रिश्ते हाथ से रेत की तरह
सरक भी जाते हैं
और ईंट की तरह खड़े भी रहते हैं.
ईंट का जवाब पत्थर से देने से
रिश्ते टूट जाते हैं.
ईंट से बने मकानों को
रिश्ते ही घर बनाते हैं.
ऐसा घर जहां
सुख-दुःख साथ-साथ रहते हैं
और
जीवन को आनंदमय बनाते हैं.
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और इनको भी पढ़ें -
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Wednesday, October 12, 2022
सरल
सरल होना कठिन है याद रखना, तरल होना कठिन है याद रखना ;
कठिन होकर चलोगे गिर पड़ोगे, उसका उठना कठिन है याद रखना |
भले पत्थर चलें तुम तरल रहना, भले रस्ता कठिन हो सरल रहना ;
सरल होकर गिरोगे चल पड़ोगे, कष्ट सहना मगर ना गरल बनना |
Monday, July 18, 2022
Memory
Memorising self
Keeps the pictures
Safe in our cognition
Unsafe in our lockers
Yet Frames the prints
And the
Unsafe in our lockers
Yet Frames the prints
And the
Experiencing self
Multiplies the effect
Through a vivid presence
Tears roll when
Experiencing self weds
With the memorising self
The brush fails to color
And the color begins to fade
It all keeps adding to the torso.
The owl in us
Still forces us to carry canon
And foolishly we keep clicking
Clicking till the battery lasts
Clicking till the memory finishes
That modern day Memory
With the bytes market decides
We keep clicking
And we keep forgetting
What we click
Clicking is mechanical
Feelings are humane
We need better machines
Or better humans
Human memory
Or the one in Bytes
Images matter
And so does memory
(9 am: Marriott to Airport in Banglore: 17.07.2022)
Multiplies the effect
Through a vivid presence
Tears roll when
Experiencing self weds
With the memorising self
The brush fails to color
And the color begins to fade
It all keeps adding to the torso.
The owl in us
Still forces us to carry canon
And foolishly we keep clicking
Clicking till the battery lasts
Clicking till the memory finishes
That modern day Memory
With the bytes market decides
We keep clicking
And we keep forgetting
What we click
Clicking is mechanical
Feelings are humane
We need better machines
Or better humans
Human memory
Or the one in Bytes
Images matter
And so does memory
(9 am: Marriott to Airport in Banglore: 17.07.2022)
Thursday, March 31, 2022
बाज़ार 2
आजकल शाम सुबह कल से काम होता है
कल से बाज़ार घर आता है दाम होता है
बहुत आराम है दिखता है हम बिक जाते हैं
एक दुकान सा जीवन तमाम होता है
बहुत आराम है दिखता है हम बिक जाते हैं
एक दुकान सा जीवन तमाम होता है
Wednesday, February 9, 2022
बाज़ार
हम सभी, कुछ बेचकर जीते हैं, मर जाते हैं
बोझ ढ़ोते हैं, थकते हैं और सो जाते हैं
कलम चलती है, रक़म आती है, चली जाती है
इसी बाज़ार में रहते हैं, नहीं घर जाते हैं
बोझ ढ़ोते हैं, थकते हैं और सो जाते हैं
कलम चलती है, रक़म आती है, चली जाती है
इसी बाज़ार में रहते हैं, नहीं घर जाते हैं
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