Showing posts with label विश्वास. Show all posts
Showing posts with label विश्वास. Show all posts

Thursday, February 14, 2013

मैं इतना सोच सकता हूँ - 13

61

मैं सुनना चाहता हूँ गीत मंगल और सुमंगल के
है जीवित हो चुकी आशा बृहद विस्तार जंगल के
मेरे विश्वास में कोई कमी होगी तो क्यों होगी
मैं इतना सोच सकता हूँ सधे संवाद जंगल के

62

मैं पड़ना चाहता हूँ पुस्तकें स्नेह वंदन की
सरल हो व्याकरण उपयोग तम गंध चंदन की
मगर क्यों द्वेष भरती पुस्तकें बाज़ार होती हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ लगी क्यों आस बस धन की

-------------------------------------------

Friday, February 1, 2013

मैं इतना सोच सकता हूँ - 11

57

मुझे नवग्रह बताते हैं जो कांटो को सजाते हैं
मगर हम हाथ की रेखायेँ सुकर्मो से जगाते हैं
बहुत से कष्ट सहकर हम कठिन प्रयास करते हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ दुकर्मो से बचाते हैं

58

 मेरा विश्वास संशित है मेरा अभ्यास प्रेरित है
मगर क्यों लिपि नियंत्रित हो नहीं आभास किंचित है
मेरा चिंतन तेरी द्रष्टि नहीं संयोग लगते हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ नहीं प्रयास वंचित है

59

मैं रिश्ते ढूँढता हूँ शहर में हर दम मशीनों से
सजाकर जो दिखाती है नई दुनिया बगीचों से
मुझे कल-कारख़ाने सब पुराने ही सुहाते हैं
मैं इतना सोच सकता हूँ यही अनुभव गलीचों से

-------------------------------------------------------------