Friday, March 27, 2020

कविता और कहानी - 2

अब नया संचार कविता बन कहानी कह रहा है
भूत की पीड़ा भुलाकर स्वच्छ पानी बह रहा है
अब नहीं विश्राम क्षण भर श्रम नया अध्याय लिखता
मृदुल भाषा सरल सब जन सजग संबल कह रहा है


जब किसी का रास्ता रोका गया है गालियों से
जब कभी बांटा गया है घर चुभी सी जालियों से
मिट गये रिश्ते मिटी विश्वास की संभावनाएं
जब कभी भी खुशबुओं को दूर रखा मालियों से


कौन सी कविता बिना श्रृंगार के सजती नहीं है
कौन सी है धुन बिना संगीत जो रचती नहीं है
कौन सा वह गीत जिसमे दर्द का दर्शन नहीं है
कौन है वह कवि जिसे संवेदना कहती नहीं है


तालियों का ज्वर कभी भी उम्र भर रहता नहीं है
ज्यों पके फल से लदा हर पेड़ कुछ कहता नहीं है
बोलना लिखना समझना ध्यान से चलना सिखाना
ज्यों लिखा हर शब्द अपनी उम्र से थकता नहीं है

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कविता और कहानी - 1

Tuesday, March 24, 2020

कविता और कहानी - 1

आजकल कविता भुलाकर मैं कहानी लिख रहा हूँ
भूलकर बचपन बुढ़ापा मैं जवानी लिख रहा हूँ
शब्द लय से हट गए हैं गद्यमय लेखन हुआ है
कुछ नहीं संकोच सीधी सी रवानी लिख रहा हूँ

क्यों विरोधाभास अब अभिव्यक्त हो बस हंस रहा है
क्यों भला मस्तिष्क मेरा नई विधा में फंस रहा है
किस विनय को कर्ण मैं दूँ कारकों को साथ मानूं
ज्ञान से मेरे परे हो ध्यान चपलक धंस रहा है

कलम रुककर कह रही है क्यों नहीं विश्राम करते
कुल स्याही जम गई है उम्र भर अविराम बहते
पृष्ठ पीड़ा से व्यथित हो लड़ रहे हैं उंगलियों से
प्रेरणा की घनिष्ठता का पृष्ठ ही परिणाम सहते

क्यों अधूरी छोड़कर कविता, विधा का रूप बदला
क्यों अधूरा साथ देकर यों हवा का रुख बदला
कल्पना के स्वर स्वतः ही स्वप्न बन कर घूमते हैं
क्यों भला संदर्भ वंचित साथ संचित रूप बदला

कुल विषय विस्तार वर्णन बंधनों से मुक्त होकर
सृजन शक्ति सुगम आशय सुलभता से युक्त होकर
जंगलों में झाड़ियों से झूझती है कलम मेरी
उस सुबह की है प्रतिक्षा अड़चनों से मुक्त होकर