Saturday, June 29, 2019

मायका - 3

मायके में कभी बचपन
बिखरा नहीं होता
संगठित होता है

मां उसको
अपने हृृृदय के
लॉकर में
बड़े पीतल के ताले में
बंद कर के रखती है

जिसकी चाबी
वो बहुत संभाल कर रखती है
कभी किसी को नहीं देती है

यह ताला
उतना ही मजबूत होता है
जितना उसका इरादा
उसका संकल्प
परिवार को एक कड़ी में
बांधे रखने का

और शनै शनै
जब नाती - नातिन,
पोते - पोतियां होते हैं

उनके सामने
धीरे धीरे ताले खुलते हैं
मां चाबी घुमाती है

सारा संगठित बचपन
मां की आंखों से
बच्चों की संवेदना तक
संप्रेषित होता है
धुलता है (मां की आंखों से)
खुलता है

बचपन मायके में
बिखरा हुआ नहीं
संगठित होता है

Saturday, June 15, 2019

मायका - 2

बहुत कुछ छोड़ आए हैं
मायके में
हम सब
अच्छी सी
दिखने वाली दुनिया
की तलाश में

क्या बचपन था
रोटी पर घी था
दूध में चीनी थी
आम की खुश्बू
कितनी भीनी थी

अब
कितना कुछ फीका है
जिंदगी जीने का
यही सलीका है

यह ससुराल है
वह मायका

Monday, June 10, 2019

मायका - 1

1

जैसे किसी समय में
होती थी
लड़की की विदाई
आंखें नम होती थीं
माता पिता, भाई बहन
और
सभी घरवालों की
नाते - रिश्तेदारों की

उसी तरह
लड़कों की भी
होती है विदाई
आज
मां बाप, भाई बहन
और घरवाले
रोते हैं
इस विदाई पर भी

मायका
लड़की का ही नहीं
लड़कों का भी होता है
जहां बचपन से पचपन तक का
संजोया हिसाब
सुरक्षित होता है

पुराने कागज़, यादें
घर की रखी पहली ईंट
दरवाजों के कब्ज़े,
चिटकनियां
और परदे
उसके आकार, प्रकार व रंग

पड़ोसी की चिकचिक
पड़ोसन की भाषा
कौए की कांव कांव
आने की आशा

होली का हुड़दंग
रंग और गुलाल
बोतल वाली पिचकारी
गुजिया, कचरी और पापड़

दिवाली के पटाखे
रंगीन फुलझडियां
धागे पे दौड़ती रेलगाड़ी
गोली से बनता सांप
खील और खिलौने
मोमबत्तियों का मोम
मोम से फिर मोमबत्तियां
बुझे हुए बम
मिठाइयां व मेला
बहनो की राखी
पतंग का उड़ाना
कटना और काटना

रामलीला की रातें
दशहरे का रावण
मिट्टी के भगवान
मेला, फिरकी और बरतन
भीड़, शोर और भगदड़
दशहरे का टीका
मीठा, नहीं फीका

बचपन की यारी
बचपन के खेल
बचपन की बदमाशियां
बचपन के मेल

पतली सी गलियां
गलियों के नुक्कड़
मोहल्ले का हुल्लड़
चाय वाला कुल्हड़
पतंगों वाला मांझा
अपना या सांझा
साइकिल पे चलना
समय का ढलना
सब याद है

मायका
केवल लड़की का ही नहीं
लड़के की भी बुनियाद है

सब छूट गया
मायके में
बस कुछ ही बचा है
ज़ायके में