Sunday, November 14, 2010

एक वार्तालाप

"आपकी  कवितायेँ  ठीक  से  खुल  नहीं  रही  हैं .
आपके  ब्लॉग  में  जा  के  भी  देखा."

"मेरे सिस्टम मे सब खुल रही हैं..."

"अब  मेरे  सिस्टम  में  भी  खुल  गयीं  हैं "

"समस्या सिस्टम की है...
कविता की नहीं
(बिचारी कविता बदनाम है)
सिस्टम ठीक होने पर
हर कविता खुलती है....
सिस्टम ख़राब होने पर
कविता लिखी जाती है
सिस्टम ठीक होने पर
कविता पड़ी जाती है..."

"क्या बात है!  शाबाश!! 
आप तो 'आशु'  कवि भी हैं. 
अभी-अभी पता चला.
बहुत खूब!!!"
***
समय, भावना, कल्पना, मजबूरी,
उड़ान, संघर्ष, साहस, व दूरी
हिम्मत, व्यवहार, सोच, व भाषा,
सपने, आँखें, दिशा और आशा
जिसको ना बना सके कवि,
सोचिये उसकी कैसी होगी छवि....

:::विजय कुमार श्रोत्रिय:::

Friday, November 12, 2010

साहस, परिस्थितियाँ व मजबूरी

जो महसूस करता हूँ
कह नहीं सकता
लिख सकता हूँ
जो महसूस करता हूँ
अप्रत्यक्ष रूप से
कह भी सकता हूँ.

प्रत्यक्ष
लिख सकता हूँ.

अभाव
साहस का
नहीं
अनुकूल परिस्थितियों का.

कोई दीवार खड़ी है
प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष के मध्य
साहस व परिस्थितियों के मध्य
कहना - किसको
निर्भर करता है
परिस्थितियों पर.

किसी से कह नहीं सकता
किसी से भी नहीं
विश्वास के कारण
लिखा किसी को दिखा नहीं सकता
किसी को भी नहीं
विश्वास के कारण
लिखता हूँ किसके लिए फिर
स्वयं को अनुभव दिलाने के लिए!

शायद इसलिए कि
साहस और परिस्थितियों से
समझौता प्रदर्शित कर सके
जो कुछ मैं लिखूं.

या फिर
जब साहस हो तब
दिखा सकूं
पड़ा सकूं
प्रकाशित करा सकूं.

वास्तव में
सबकुछ
परिस्थितियों पर निर्भर है
समय पर भी
स्वयं पर भी
कोई एक अकेला इसके लिए उत्तरदायी नहीं है
आखिर इसीलिये
सोचना पड़ता है,
बोलने से पहले
कहने से पहले
कुछ भी
और लिखने से पहले
कुछ भी

अंततः:
सबकुछ ना कह सकता हूँ,
सबसे
न लिख सकता हूँ
सबके लिए
प्रयास कर सकता हूँ
अवश्य
साहस, परिस्थितियाँ व मजबूरी...

(Quarter No 33, Sherubtse, Kanglung, Bhutan: 2.11.1994..4 PM.. tomorrow is diwali)

Saturday, November 6, 2010

Diwali 2010

light of hope and expectation,
celebrating the victory
good over evil, 
evil of thought and of action
arrival of Ramrajya
ray of hope
good over evil
beyond wayward behaviour
positivity in thought and action
light of hope and expectation...

Thursday, November 4, 2010

कांग्लुंग मे दिवाली

कांग्लुंग कॉलेज मे, आई दिवाली
प्रथम बार हमको लगा, रंग, रूप, जाली
रंग, रूप, जाली, याद आई थी घर की
ऐसा लगा, जैसे हो, यही मजबूरी हर की

हर सुख, हर स्थान पर, नहीं कभी संभव
स्वर्ग बने धरती, अगर हो जाये संभव
हो जाये संभव, प्रकाश घर-घर मे जागे
दिवाली सन्देश मे, यही कहे, भागे

भारतीय आकाश में, शोर रहे इस रात
शांति कर रही शोर है, कान्ग्लुंग की बात
कान्ग्लुंग की बात, रात मे होती वाह-वाह, दाद
खील, बताशे, खिलौने, हमे लगे अपवाद

सुबह हुई देखा सुना बीती दिवाली,
प्रथम वार हमको लगा रंग रूप जाली...

(27 Sept 1994 - Exam duty, room no 26, Sherubtse College, Kanglung, Bhutan)

Tuesday, November 2, 2010

तुम और मैं

मैं क्यों भूल जाता हूँ
तुम्हारे स्नेह की भाषा
            प्यार की परिभाषा
            आलिंगन का आशय
तुम्हारे शरीर का स्पर्श
            स्पर्श का आकार, प्रकार
            स्पर्श की ऊर्जा
तुम्हारे पैरों की आहट
            आँखों का आमंत्रण           
            आँखों के स्वप्न
            स्वप्नों की उडान
और
तुम्हारे कृत्यों की सीमा
मैं भूल जाता हूँ
क्यों?
...
मैं भूल जाता हूँ
और
फिर भी चाहता हूँ
तुमको स्मरण रहे
तुम ना भूलो
           मेरा प्यार
           मेरी परिभाषाएं
           मेरा आलिंगन व उसका आशय
           मेरा स्पर्श
           मेरी आहट
           मेरी उडान
           मेरी सीमा
मुझको...
...
तुम
तुम हो
और
मैं
मैं
क्यों भूल जाता हूँ मैं....
(Shillong...L-57...2nd Nov 2010...9 AM)