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Sunday, March 24, 2019

कुर्सी और मेज

मेज पर रखे व पड़े
बिस्कुट, गिलास और प्रस्ताव
सोफे व कुर्सी के मध्य

कुर्सी व सोफे पर रखे थे 
सम्बन्ध
प्रगाढ़, फलीभूत, निवेशित
कुर्सी के सम्बन्ध सचमुच
अजीब होते हैं
आशाओं व अपेक्षाओं से भरे
क्षमताओं व समीक्षाओं से परे

मेज की व्यथा दर्शनीय थी
उसके कान पक चुके थे
सुनसुन कर
प्रस्तावों पर चर्चा
वाद, प्रतिवाद
कुर्सी से सोफे तक
(कुछ महत्वपूर्ण से दिखने वाले
व्यक्तियों की
चहलकदमी के मध्य)

बाज़ार व समाज
उतार व चढ़ाव
व्यापार व व्यवहार
अर्थ व समर्थ
ग्राहक व कर्मचारी
प्रबंधक व निवेशक
सब कुछ इन मेजों के
दिमाग का वजन
बड़ा रहा था

कुर्सी पर बैठा व्यक्ति
अपने निवेश पर
प्रत्याय की अपेक्षा में
प्रश्नों के उत्तर दे रहा था,
अपने विवेकानुसार,
अपनी क्षमतानुसार

सोफे पर बैठे व्यक्ति
प्रस्तावों का मूल्यांकन कर रहे थे,
प्रस्तावों से अधिक
कुर्सी का
आंकलन व मूल्यांकन हो रहा था
क्योंकि वहां सम्बन्ध बैठे थे

सम्बन्धों के कान
सम्बन्धों की आंखों की भाषा
सुन रहे थे
सम्बन्धों के चर्म के संकेतों को
सम्बन्धों की नाक
सूंघ रही थी

और बेचारी मेज़
आंख, कान, नाक,
जिव्या व त्वचा
सभी के आत्मीय साक्षात्कारों को
पढ़ रही थी
अपनी कहानी गढ़ रही थी
अपनी कविता रच रही थी
अपने गीतों को संगीत दे रही थी
उसे पता था
कुर्सी ही उसका साथ देगी
जिससे वह अकेले में
अपनी वेदना
अपनी कहानी,
कविता, गीत व संगीत
साझा करेगी

कुछ समय बाद
जब मेज व कुर्सी
अकेले में होंगे
उनके सिवाय
जब कोई नहीं होगा आसपास
जब वे दोनों (सिर्फ दोनों),
कमरे में बंद होंगे
और चावी खो जाएगी
तो वे आपस में
अपने अपने अनुभव
साझा करेंगे
बातें करेंगे

हम सब उनकी बातों का
विषय होंगे
हिस्सा होंगे

क्या होगा
उनका आंकलन
कुर्सियों व सोफे पर बैठे व्यक्तियों का

कुर्सी व मेज़ के मूल्य
शायद
उतने बाज़ारू न हों
जितने 
उनपर विराजमान व्यक्तियोँ के होते हैं

मुझे विश्वास है कि
उनके आंकलन में अवसरवादिता का
कोई स्थान नहीं होगा
मुझे विश्वास है कि
उनकी संवेदनशीलता
मनुष्यों की तुलना में बहुत अधिक होगी
उनका भावनाबोध
अधिक बेहतर होगा

जीव मनुष्य
निर्जीव लकड़ी

जीवित
मृत
पुनर्जीवित
सम्बन्ध

अवसर
निवेश
पुनर्निवेश
प्रत्याय


(भावी शोध विद्यार्थियों के साक्षात्कार के दौरान हुए अनुभवों पर आधारित - ४ अक्टूबर २०१८, वाणिज्य विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली )

Wednesday, October 23, 2013

कुर्सी

कुर्सी
प्रतीक्षा में है
कोई आये
और
उसको अपनाये
अपने सपनो से कहीं अधिक
अपनी भूख से परे
अपनी सीमाओं में रहकर।

अप्रत्याशित
अस्वभाविक
असहनीय
वेदना में लिप्त
कुर्सी
प्रतीक्षा में है।

क्या नहीं देखा
अनुभव किया
इस कुर्सी ने
विभिन्न व्यक्तियों का सानिग्ध
उनका व्यक्तित्व
उनकी भाषा विचार व्यवहार
क्या-क्या नहीं सहा
इस कुर्सी ने
प्रज्ञा प्रबोध व पीड़ा
प्रमोद प्रसाद व परिवाद।

कुर्सी को ज्ञात है
उसका अस्तित्व
उसके हत्थों पर रखे
मजबूत हाथो से है
उसके जमे हुए पाओं से है
उसके नुकीले काँटों पर
निस्वार्थ
निर्विवाद
व निष्पक्ष भावना से लिए
निर्णयों में है
उसका अस्तित्व
निर्भीक व्यक्तित्व से है।

कुर्सी का अस्तित्व कदापि नहीं है
उसकी लकड़ी
या वनावट से
उसपर लगी दीमक से
उसकी पूजा करने वालों से
उस पर की गई पॉलिश से
या
पोंलिश करने वालों से
उसके सेवादारों से
उस पर भिऩकने वाली मक्खियों से।

कुर्सी
प्रतीक्षा में है
कोई आये
संभाले व सजाये
मेरी शोभा बढ़ाए
काँटों की पीड़ा से परे
फूलों की सेज सजाये
कोई आये
अपने व्यक्तित्व की खुशबू से
वातावरण को महकाए
नई ऊर्जा को जन्म दे
संस्थान को चमकाए
कोई आए
कोई आए
कुर्सी
प्रतीक्षा में है।