Uday Prakash :
Waiting alone for the sun to appear from far beyond the clouds and mountains : Internal Exile in the Doomed Topograhy of the Language
कब निकलेगा
कल्पना का सूरज
कुम्हार की तरह
कब निकलेगा
कल्पना का सूरज
कब बादलों पर
तीब्र प्रहार कर
निकलेंगी किरनें
और भींचती हुई
ह्रदय को
विवश कर देंगी
थामने को
कलम
फिर क्या
आंखे बोलती जायेंगी
हाथ शब्दों को उतारेंगे
कल्पनाओं के आकाश से
संभालकर
अक्षरों को बांधेंगेकुम्हार की तरह
और
फिर तैयार होगी
एक स्मरणीय
प्रतिमा
स्फुटित होगी
कल्पनाओं की भाषा
मुझे प्रतीक्षा है
कब
सूरज उदय होकर
देगा प्रकाश
निराशा के बादल
छंट जायेंगे
आशा
सूरज
उदय
प्रकाश.
स्फुटित होगी
कल्पनाओं की भाषा
मुझे प्रतीक्षा है
कब
सूरज उदय होकर
देगा प्रकाश
निराशा के बादल
छंट जायेंगे
आशा
सूरज
उदय
प्रकाश.
कच्ची अमिया
कब पकेगी...
(3:40 pm, 25 Sept 2011, Shillong)