Saturday, April 28, 2012

मैं इतना सोच सकता हूँ - 2

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७.
मुझे जब भूख लगती है, मेरी पत्नी बताती है
मगर इस भाव से मुझको, न जाने क्यों सताती है
तेरी पूजा, मेरा जीवन, मेरी पूजा, तेरा जीवन
मैं इतना सोच सकता हूँ, मेरा जीवन सजाती है.
८.
मैं क्यों घर से निकलता हूँ, वो क्यों घर मे पसरते हैं
मगर जब संघ सच्चा हो, सभी सपने संवरते हैं
मेरी आशा, मेरा आग्रह, तेरी सीमा, तेरा वादा
मैं इतना सोच सकता हूँ, गरज बादल बरसते हैं.
९.
मैं जब कविता सुनाता हूँ, वो अक्सर टाल जाती है
मगर मेरी यही दुनिया, वो इसको मान जाती है
मेरी कविता, मेरा जीवन, तेरा जीवन मेरी कविता
मैं इतना सोच सकता हूँ, वो कवितायेँ पकाती है.
१०.
मैं पत्थर जोड़ लेता हूँ, वो मट्टी को बनाते हैं
मगर मट्टी बिना पत्थर, बिना पानी सजाते हैं
तेरे पत्थर, मेरी मट्टी, मेरा पानी, तेरे करतब
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं आकार पाते हैं.
११.
मैं इंग्लिश मे पढाता  हूँ, न हिंदी भूल जाता हूँ
मगर फिर भी कहीं खुद मे, मैं उसका मूल पाता हूँ
मेरी भाषा, मेरी बोली, मेरा शिक्षण, मेरी टोली
मैं इतना सोच सकता हूँ, नहीं मां भूल पाता हूँ.