देखे
कुछ मनुष्य
जानवरों के शहर में
मदमस्त हाथी
भौंकते कुत्ते
दहाड़ते शेर
गुर्राते भालू
गर्भवती बकरी
रंग बदलते गिरगिट
रंभाती गाय
हिनहिनाते घोड़े
मिमियाती बिल्लियाँ
टरटराते मेंढक
रेंगते कछुए
फुफकारते सांप
भिनभिनाती मधुमक्खियाँ
कावं-कावं करते कौए
गुटरगूं करते कबूतर
चिंचिहाती चिड़ियाँ
'जब आती है मौत
गीदड़ की
तो भागता है
शहर की ओर'
निहारते गीदड़
भीगी बिल्ली
खूनी शेर
एक सन्नाटा
शांति का शोर
देखे
कुछ मनुष्य
जानवरों के शहर में
इस गाँव के मध्य
मेघों के घर में
या
इस शहरनुमा गावं में
जंगल में
क्यों घुस आयें हैं
कुछ मनुष्य
जानवरों के भेष में।
(18 Oct 2011 सुबह, जब मैं व मेरी पत्नी टहल रहे थे, विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अध्यापक ने मुझसे हंसते हुए पूंछा 'आपने किसी मनुष्य को देखा टहलते हुए', उनका इशारा उनके अन्य साथियों से था जिन्हें वो खोज रहे थे। उनका यह वाक्य इस कविता का प्रेरणा-स्रोत बना। धन्यवाद प्रोफेसर शुक्ला)