Thursday, April 25, 2013

मोती


74

मैं चलना चाहता हूँ 
इस धरा पर शूल में बंधकर
जो उस कल को सुधारे 
सीप बन संघर्ष जीवन भर  
मैं इस गहरे समंदर मे 
कोई मोती तो पाउंगा
मैं इतना सोच सकता हूँ 
नदी में प्यार की बहकर

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Wednesday, April 17, 2013

क्यों


73

मैं पढकर सोचता हूँ 
सोचकर पढता नहीं हूँ क्यों 
मैं रोकर सीखता हूँ 
सीखकर रोता नहीं हूँ क्यों 
मेरे हंसने से उनकी आँख 
रोती है करूँ क्या मैं
बस इतना सोच सकता हूँ 
यही अब सोचता हूँ क्यों 

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Thursday, April 11, 2013

रिश्ते 2


72

हर गगन चुम्बी इमारत सड़क से 
दूर होती जा रही है
हर किसी रिश्ते में करवट 
क्रूर होती जा रही है
लालसा में घिर निगाहें
छत सितारे चूमती है
सोच सकता हूँ मैं इतना 
समस्या घोर होती जा रही है

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Friday, April 5, 2013

मुस्कराना


71

मुस्कराना बहुत ज़रूरी है 
वरना सब कुछ उदास ही तो है
दूर खुद से कभी न जाओ तुम 
ज़िंदगी नाम आस ही तो है
वक्त रहता कहाँ है हरदम एक 
उठ के गिरना है गिरके उठना है
सोचता हूँ मैं बस इतना अब 
नदी के नाम प्यास भी तो है 
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4 april 2013/ 8 30 am

(शैली अग्रवाल की फ़ेस बूक प्रविष्टि 
'तनहा... खुद से दूर.. सोच के मुस्कुरा देती हूँ..
कि अब उदासी का साथ सही.. 
उम्र भर तो रहेगा..!!
के उत्तर मे)
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